Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम अध्ययन - माता की भाव-विह्वलता
११३
तक्खण-ओलुग्ग-दुब्बल-सरीरा-लावण्ण-सुण्ण-णिच्छाय-गयसिरीया पसिढिल-भूसण- पडतखुम्मिय-संचुण्णियधवलवलय-पन्भट्ठ-उत्तरिजा सूमालविकिण्ण-के सहत्था मुच्छावस-णट्ठ-चेयगरुई परसुणियत्तव्व चंपगलया णिव्वत्तमहेव इंदलट्ठी विमुक्क-संधिबंधणा कोट्टिमतलंसि सव्वंगेहिं धसत्ति पडिया।
शब्दार्थ - अणिठं - अनिष्ट, अकंतं - अकान्त-अकमनीय, अप्पियं - अप्रिय, अमणुण्णं - अमनोज्ञ, अमणामं - अमनोरम, असुयपुव्वं - अश्रुतपूर्व-पहले नहीं सुना हुआ, फरुसं - परुष, कठोर, अभिभूया- अभिभूत-प्रभावित, सेय - स्वेद-पसीना, पगलंत - प्रगलन्त-स्रवित होते (झरते) हुए, सोय - शोक, भर - भार, पवेवियंगी - प्रकंपित अंग, णित्तेया - निस्तेज, दीण - दैन्य युक्त, विमण- विमनस्क-उदास, करयल मलिय - हाथों से मसली हुई, तक्खण - तत्क्षण, ओलुग्ग - अवरुग्ण-रुग्णतायुक्त, लावण्णसुण्ण - लावण्यरहित, णिच्छाय - द्युतिविहीन, गयसिरीया - गतश्रीका-शोभारहित, पसिढिल - प्रशिथिल-अत्यंत ढीले, पडत - गिरते हुए, खुम्मिय - चक्कर खाती हुई, संचुण्णिय - संचूर्णित-टूटे हुए, पन्भट्ट - प्रभृष्ट-खिसक गया, विकिण्ण - विकीर्ण-फैले हुए, केसहत्थकेशपाश, मुच्छावस - मूर्छा-बेहोशी के कारण, णट्ठचेयगरुई - चेतना के नष्ट हो जाने से निढाल, परसुणियत्त - कुल्हाड़ों से काटी हुई, णिव्वत्तमहेव - महोत्सव के समाप्त हो जाने पर, इंदलट्ठी - इंद्रस्तंभ, विमुक्क - श्लथित-शिथिलता युक्त, संधिबंध - शरीर के जोड़, कोटिमतलंसि - मणि रत्न जटित आंगन पर, सव्वंगेहिं - सभी अंगों से, धसत्ति- धड़ाम से।
भावार्थ - मेघकुमार ने जो कहा, रानी धारिणी ने वैसा कभी सुना ही नहीं था। उसको वह बड़ा अनिष्ट, अवांछित, अमनोज्ञ प्रतीत हुआ। ऐसी बात सुनते ही उसके मन पर पुत्र के वियोग का दुःख छा गया। उसके शरीर पर पसीना आ गया, रोम कूपों से चूते स्वेद कणों से उसका शरीर व्याप्त हो गया। शोक से उसके अंग कांपने लगे। वह निस्तेज-सी हो गई। उसके चेहरे पर दीनता एवं उदासीनता छा गई। वह हाथों से मसली हुई कमल माला सी प्रतीत होने लगी। उसका शरीर तत्क्षण रुग्ण एवं दुर्बल जैसा हो गया। उसका लावण्य आभा और श्री विहीन हो गया। उसके आभूषण ढीले पड़कर गिरने लगे। उसके उज्वल वलय-कंगन खिसक कर भूमि पर गिर पड़े और चूर चूर हो गए। उसका उत्तरीय वस्त्र खिसक गया। सुकोमल
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