Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
ऐहिक भोग : असार, नश्वर (१२२)
तणं से मेहे कुमारे अम्मापिऊहिं एवं वुत्ते समाणे अम्मापियरो एवं वयासीतहेव णं तं अम्मयाओ! जहेव णं तुम्हे ममं एवं वयह - तुमं सि णं जाया! अम्हं एगे पुत्ते तं चेव जाव णिरावयक्खे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पव्वइस्ससि एवं खलु अम्मयाओ! माणुस्सए भवे अधुवे अणियए असासए वसणसउवद्दवाभिभूए विज्जुलया - चंचले अणिच्चे जलबुब्बुय- समाणे कुसग्ग- जलबिंदु - सण संझभराग - सरिसे सुविणदंसणोवमे सडण- पडण- विद्धंसण धम्मे पच्छा पुरं च णं अवस्स - विप्पजहणिजे, से के णं जाणड़ अम्मयाओ! के पुव्विं गमणाए के पच्छा गमणाए ? तं इच्छामि णं अम्मयाओ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पव्वइत्तए ।
शब्दार्थ माणुस भवे मनुष्य भव, अधुवे - अध्रुव, अणियए
अनियत,
असासय
अशाश्वत, वसण-सउवद्दवाभिभूए - सैकड़ों व्यसनों विपत्तियों के उपद्रवों से युक्त, विज्जुलया - चंचले- बिजली की तरह क्षण-भंगुर, संझब्भराग - सरिसे - सायंकालीन आकाश के रंग के समान मिट जाने वाला, सुविण - दंसणोवमे स्वप्न - दर्शन के तुल्य, सड़ना - गिरना, विद्धंसण - विध्वस्त होना, विप्पजहणिजे - त्यागने योग्य,
सडण-पडण के - कौन ?
भावार्थ
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माता द्वारा यों कहे जाने पर वह मेघकुमार बोला- माताश्री! आप जो कहती हैं कि मैं आपका एक मात्र प्रिय पुत्र हूँ, वृद्धावस्था में दीक्षा ग्रहण करूँ, यह बात एक अपेक्षा से ठीक है किंतु इस संदर्भ में मेरा निवेदन है कि यह मनुष्य जीवन अशाश्वत और नश्वर है। न जाने कितनी आपदा-विपदाओं से भरा है। जिस प्रकार बिजली क्षण भर में विलुप्त हो जाती है, वैसे ही मनुष्य जीवन क्षणभंगुर है। यह पानी के बुलबुले, दूब की नोक पर पड़ी ओस की बूँद के समान नश्वर है। संध्याकालीन आकाश में व्याप्त मेघों की लालिमा जैसा शीघ्र ही मिट जाने वाला है। यह स्वप्न-दर्शन की तरह अयथार्थ है। रोगों, उपद्रवों से सड़ना गिरना इसका स्वभाव
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