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प्रथम अध्ययन - एक दिवसीय राज्याभिषेक
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पाययजणस्स णो चेव णं धीरस्स णिच्छियस्स ववसियस्स एत्थ किं दुक्कर करणयाए? तं इच्छामि णं अम्मयाओ। तुन्भेहिं अन्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पव्वइत्तए।
शब्दार्थ - कीवाणं - पौरुषहीनों के, कायराणं - कायरों के, कापुरिसाणं - उत्साहहीनों के, इहलोगपडिबद्धाणं - ऐहिक सुखों में जकड़े हुए-जनों के, परलोग-णिप्पिवासाणं - पारलौकिक सुख की इच्छा न रखने वालों के लिए, दुरणुचरे - दुःखपूर्वक पालन किया जाने वाला, पाययजणस्स - मनोबल रहित सामान्यजनों के लिए, धीरस्स - धैर्यशाली के लिए, णिच्छियस्स - जीवादि नव तत्त्वों में निष्ठाशील के लिए, ववसियस्स - व्यवसित-उद्यमशील के लिए, दुक्करं - दुष्कर। .. . ... भावार्थ - माता-पिता द्वारा यों कहे जाने पर, मेघकुमार ने उनसे कहा कि निर्ग्रन्थ प्रवचन के सत्य, श्रेष्ठ आदि होने का, उसके पालने में अनेकानेक कठिनाइयों के आने का तथा भुक्त भोग होने के अनन्तर प्रव्रज्या स्वीकार करने का, जो आपने कहा, वह आपकी दृष्टि से ठीक है परंतु पिताश्री! पाताश्री! इस निग्रंथ प्रवचन का पालन करना उनके लिए दुष्कर है, जो पुरुषार्थहीन, कायर, उत्साह-शून्य, ऐहिक सुखों की आकांक्षा वाला तथा मनोबल रहित है। जिनकी जीवादि नव तत्त्व में निष्ठा हो, जो उद्यमशील हों, उनके लिए क्या दुष्कर है? आप आज्ञा प्रदान करें, मैं श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से दीक्षा स्वीकार कर लूँ, यही मेरी अन्तर्भावना है।
एक दिवसीय राज्याभिषेक
(१३१) _तए णं तं मेहं कुमारं अम्मापियरो जाहे णो संचाइंति बहूहिं विसयाणुलोमाहि य विसयपडिकूलाहि य आघवणाहि य पण्णवणाहि य सण्णवणाहि य विण्णवणाहि य आघवित्तए वा पण्णवित्तए वा सण्णवित्तए वा विण्णवित्तए वा ताहे अकामए चेव मेहं कुमारं एवं वयासी-“इच्छामो ताव जाया! एगदिवसमवि ते रायसिरिं पासित्तए।"
शब्दार्थ - अकामाई - न चाहते हुए, रायसिरिं - राज्यश्री-राजा के रूप में शोभा। भावार्थ - जब माता-पिता मेघकुमार को विषयानुकूल तथा विषय प्रतिकूल अनेक प्रकार
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