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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
के कथनों द्वारा समझा नहीं पाए, संसार में रहने को सहमत नहीं कर पाए, तब उन्होंने न चाहते हुए भी कहा कि पुत्र! हमारी यह इच्छा है कि एक दिन के लिए भी हम तुम्हें राजा के रूप में सुशोभित देखें।
(१३२) तए णं से मेहे कुमारे अम्मा पियर-मणुवत्तमाणे तुसिणीए संचिट्टइ। . शब्दार्थ - अणुवत्तमाणे - अनुवर्तन करता हुआ-मानता हुआ। भावार्थ - मेघकुमार ने माता-पिता की इच्छा को मौन भाव से स्वीकार किया।
राज्याभिषेक
(१३३) तए णं से सेणिए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! मेहस्स कुमारस्स महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायाभिसेयं उवट्ठवेह। तए णं ते कोडुंबिय-पुरिसा जाव तेवि तहेव,उवट्ठवेंति।
शब्दार्थ - महत्थं - विशिष्ट राज्य-वैभव युक्त, उवट्ठवेह - तैयारी करो, महरिहं - महान् पुरुषों के योग्य, रायाभिसेयं - राज्याभिषेक।
__भावार्थ - मेघकुमार की मौन स्वीकृति प्राप्त कर राजा श्रेणिक ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा - देवानुप्रियो! राज्य-वैभवादि रूप महान् अर्थयुक्त, बहुमूल्य एवं कुलीन पुरुषों के राज्याभिषेक में प्रयोजनीय सामग्री, विपुल-परिमाण में तैयार करो। कौटुंबिक पुरुषों ने वैसा ही किया।
(१३४) तए णं से सेणिए राया बहूहिं गणणायग-दंडणायगेहि य जाव संपरिवुडे मेहं कुमारं अट्ठसएणं सोवण्णियाणं कलसाणं, एवं रुप्पमयाणं कलसाणं, सुवण्णरुप्पमयाणं कलसाणं, मणिमयाणं कलसाणं, सुवण्णमणिमयाणं कलसाणं, रुप्पमणिमयाणं कलसाणं, सुवण्ण-रुप्प-मणिमयाणं कलसाणं, भोमेज्जाणं
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