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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
शब्दार्थ - एगमेगाए - प्रत्येक, भारियाए - पत्नी के लिए, अण्णं - अन्यान्य । भावार्थ - मेघकुमार ने प्रत्येक पत्नी को एक - एक करोड़ रजत मुद्राएं, एक - एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएं, प्रेषणकारिका दासियां तथा विपुल धन, स्वर्ण, रत्न आदि प्रदान किये जो सात पीढियों तक उनके लिए दान, भोग एवं विभाग- वितरण आदि में पर्याप्त रह सकें।
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तणं से मेहे कुमारे उप्पिं पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंग-मत्थएहिं वरतरूणि संपउत्तेहिं बत्तीसइ बद्धएहिं णाडएहिं उवगिज्जमाणे-उवगिज्जमाणे उवलालिज्जमाणेउवलालिज्जमाणे सह-फरिस - रस रूव-गंध-विउले माणुस्सर कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहर।
शब्दार्थ - उप्पिं ऊपर, पासायवरगए उत्तम भवन स्थित, फुट्टमाणेहिं - स्फुटित होते हुए निकलते हुए, मुइंग-मत्थएहिं - मृदगों के मस्तके अग्रभाग, संपउत्तेहिं - संप्रयुक्त किए हुए, बत्तीसइ बद्धएहिं - बत्तीस प्रकार के, णाडएहिं - नाटकों द्वारा, उवगिज्जमाणे उपगीयमान - गाए जाते हुए, उवलालिज्जमाणे - उपलालित किया जाता हुआ-लडा हुआ, पच्चणुभवमाणे - प्रत्यनुभव करता हुआ भोगता हुआ ।
भावार्थ - मेघकुमार अपने महल के ऊपरी भाग में शब्द, रस, रूप, गंध विषयक उत्तम भोग भोगता हुआ रहने लगा । वहाँ सुन्दर मृदंगों से निकलती हुई ध्वनि के साथ तरुणियों द्वारा किये जाते हुए बत्तीस प्रकार के नाटकों का तद्गत् संगान (गायन) का आनंद लेता रहता, मनोरंजन करता रहता ।
भगवान् महावीर स्वामी का पदार्पण
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तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणामेव रायगिहे णयरे गुणसिलए चेइए जाव विहरइ |
शब्दार्थ - पुव्वाणुपुव्विं - अनुक्रम से तीर्थंकर परंपरा के अनुरूप, चरमाणे - चलते हुए।
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