Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम अध्ययन - धारिणी देवी का दोहद
(४१) तए णं से सेणिए राया सीहासणाओ अब्भुढेइ २ त्ता जेणेव धारिणी देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धारिणिं देविं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिए! सुमिणसत्थंसि बायालीसं सुमिणा तीसं महासुमिणा जाव एगं महासुमिणं जाव भुज्जो-भुज्जो अणूवूहेइ।
भावार्थ - तदनंतर राजा श्रेणिक सिंहासन से उठा। उठकर वहाँ आया जहाँ रानी धारिणी थी। उसने रानी से कहा - देवानुप्रिये! तुमने बयालीस स्वप्नों के अंतर्गत एक महास्वप्न देखा है। यह अत्यंत हर्ष का विषय है। राजा ने बार-बार स्वप्न की प्रशंसा की।
(४२) तए णं सा धारिणी देवी सेणियस्स रण्णो अंतिए एयमहँ सोच्चा णिसम्म हट्ट जाव हियया तं सुमिणं सम्म पडिच्छइ २ त्ता जेणेव सए वासघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बहाया कयबलिकम्मा जाव विपुलाइं जाव विहरइ। ... शब्दार्थ - सए - स्वकीय-अपने, वासघरे - आवासगृह में, विपुलाई - बहुत से।
भावार्थ - रानी धारिणी राजा श्रेणिक का कथन सुनकर अत्यंत हर्षित, परितुष्ट एवं प्रसन्न हुई। अपने स्वप्न को भली भाँति आत्मसात् किया। वैसा कर अपने निवास स्थान में आई। फिर स्नान सम्बन्धी संपूर्ण विधि पूर्ण की एवं मंगलोपचार किए। पूर्ववत् विपुल भोगमय जीवन जीने लगी।
धारिणी देवी का दोहद
(४३) तएं णं तीसे धारिणीए देवीए दोसु मासेसु वीइक्कंतेसु तइए मासे वट्टमाणे तस्स गब्भस्स दोहल-काल-समयंसि अयमेयारूवे अकालमेहेसु दोहले पाउभवित्था।
शब्दार्थ - दोसु मासेसु वीइक्कंतेसु - दो महीने व्यतीत होने पर, तइए - तृतीय,
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