Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम अध्ययन - दोहद की संपन्नता
जैसे उज्ज्वल, निर्मल वस्त्र धारण किए। गंध हस्ति पर सवार हुई तथा उसने प्रस्थान किया। उस पर अमृत-मंथन से उत्पन्न झागों जैसे उज्ज्वल, निर्मल चँवर डुलाए जाने लगे।
(८१) तए णं से सेणिए राया ण्हाए कयबलिकम्मे जाव सस्सिरीए हत्थिखंधवरगए सकोरंट-मल्ल दामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं चउचामराहिं वीइज्जमाणे धारिणिं देविं पिट्ठओ अणुगच्छइ।।
भावार्थ - राजा श्रेणिक ने भी स्नान किया, दैनंदिन मांगलिक कर्म संपादित किए। वह अत्यंत शोभित, उत्तम हाथी पर सवार हुआ। छत्र-वाहक उस पर कोरण्ट पुष्प की मालाओं से सज्जित छत्र धारण किए हुए थे एवं चँवर डुला रहे थे। राजा ने रानी धारिणी का अनुगमन किया।
तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा हत्थिखंध-वरगएणं पिट्ठओ २ समणुगम्म-माणमग्गा हय-गय-रह-जोह-कलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिवुडा महया भडचडगर वंदपरिक्खित्ता सव्विड्ढीए सव्वज्जुईए जाव दुंदुभिणिग्योस-णाइयरवेणं रायगिहे णयरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर जाव महापहपहेसु णागरजणेणं अभिणंदिज्जमाणी २ जेणामेव वेभारगिरिपव्वए तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वेभारगिरि कडग-तड-पायमूले आरामेसु य, उज्जाणेसु य, काणणेसु य, वणेसु य, वणसंडेसु य, रुक्खेसु य, गुच्छेसु य, गुम्मेसु य, लयासु य, वल्लीसु य, कंदरासु य, दरीसु य, चुण्ढीसु य, दहेसु य, कच्छेसु य, णईसु य, संगमेसु य, विवरएसु य, अच्छमाणी य, पेच्छमाणी य, मज्जमाणी य, पत्ताणि य, पुप्फाणि य, फलाणि य, पल्लवाणि य, गिण्हमाणी य, माणेमाणी य, अग्यायमाणी य, परिभुंजमाणी य, परिभाएमाणी य, वेभारगिरिपायमूले दोहलं विणेमाणी सव्वओ समंता आहिंडइ। तए णं सा धारिणी देवी (तंसि अकालदोहलंसि विणीयंसि सम्माणियदोहला) विणीयदोहला संपुण्णदोहला संपण्णदोहला जाया यावि होत्था।
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