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प्रथम अध्ययन - दोहद की संपन्नता
भावार्थ - तब अभयकुमार को अपने पूर्व जन्म के मित्र देव से यह सुनकर बड़ा ही हर्ष और परितोष हुआ। वह अपने भवन से निकला। राजा श्रेणिक के पास आया और हाथ जोड़कर, यथाविधि प्रणाम कर, उनसे बोला -
(७६) एवं खलु ताओ! मम पुव्वसंगइएणं सोहम्मकप्पवासिणा देवेणं खिप्पामेव सगज्जिया सविज्जुया (सफुसिया) पंचवण्ण-मेह-णिणाओ-वसोहिया दिव्वा पाउससिरी विउव्विया। तं विणेउ णं मम चुल्लमाउया धारिणी देवी अकालदोहलं।
भावार्थ - पिताश्री! मेरे पूर्व भव के मित्र, सौधर्म कल्पवासी देव ने गर्जना, विद्युत और बरसती हुई बूंदों से युक्त, पाँच वर्गों के मेघों की ध्वनि से युक्त, तीव्र वर्षा ऋतु की शोभा को, विक्रिया द्वारा- वैक्रिय लब्धि द्वारा प्रादुर्भूत किया है। अतः मेरी छोटी माता धारिणी देवी अपने दोहद को पूर्ण करे। .
(७७) तए णं से सेणिए राया अभयस्स कुमारस्स अंतिए एयमढें सोच्चा णिसम्म हहतुट्ठ जाव कोडुबियपुरिसे सहावेड़, सहावेत्ता एवं वयासी - "खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! रायगिहं जयरं सिंघाडग-तिग-घउक्क-चच्चर० आसित्तसित्त जाव सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभूयं करेह य कारवेह य करित्ता य कारवित्ता य मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह।" तए णं ते कोडेबियपुरिसा जाव पच्चप्पिणंति।
भावार्थ - राजा श्रेणिक अभयकुमार से यह सुनकर बहुत हर्षित एवं प्रसन्न हुआ। उसने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा - देवानुप्रियो! शीघ्र ही राजगृह नगर के तिराहों, चौराहों, चौकों, राजमार्गों, सामान्य पथों आदि में सर्वत्र पानी का छिड़काव कर, उन्हें विविध . पुष्पादि द्वारा सुरभिमय बनाओ। मेरे आदेशानुरूप ऐसा कर मुझे वापस सूचित करो। कौटुम्बिक पुरुषों ने राजा के आदेशानुरूप सब व्यवस्था करवाई और वापस राजा को वह निवेदित किया।
.... (७८) तए णं सेणिए राया दोच्चंपि कोडुंबियपुरिसे सहावेह, सहावेत्ता एवं वयासी
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