Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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य णं आहारेमाणी णाइतित्तं णाइकडुयं णाइकसायं णाइअंबिलं णाइमहुरं जं तस्स गन्भस्स हियं मियं पत्थयं देसे य काले य आहारं आहारेमाणी णाइचिंत्तं, णाइसोयं णाइदेण्णं णाइमोहं णाइभयं णाइपरित्तासं ववगयचिंता-सोयमोह-भयपरित्तासा उउ-भयमाणसुहेहिं भोयणच्छायण-गंध-मल्लालंकारेहिं तं गन्भं सुहंसुहेणं परिवहइ। ___ शब्दार्थ - अणुकंपणट्ठाए - अनुकंपा के लिए, जयं - यतनापूर्वक, सावधानी से, चिट्ठइ - खड़ी होती, आसयइ - बैठती, सुवइ - सोती, आहारेमाणी - आहार करती हुई, णाइतित्तं - अधिक तिक्त-तीखा, कडुयं - कड़वा, कसायं - कसैला, अंबिलं - खट्टा, महुरं-मधुर, पत्थय- आरोग्यकर, देण्णं - दैन्य-दीनता, परित्तासं - परित्रास-आकस्मिक भय, उउ-भयमाण-सुहेहिं - ऋतु अनुकूल सुखप्रद, अच्छायण - वस्त्र, परिवहइ - वहन करतीपालन करती रही। . भावार्थ - रानी धारिणी ने अपने अकाल दोहद के पूर्ण होने पर अपने आपको बहुत सम्मानित माना। वह अपने अन्तस्थित गर्भ पर अनुकंपा कर, उसे जरा भी बाधा न पहुँचे, यह सोच कर खड़ा होना, बैठना, सोना, खाना-पीना आदि सभी कार्य बड़ी यतना-जागरूकता के साथ करती। वह भोजन ग्रहण करते समय ध्यान रखती कि यह अधिक तीखा, कडुआ, कसैला, मीठा न हो। वह देश और काल के अनुरूप हो, गर्भ के लिए हितकर हो। वह अधिक चिंता, शोक, दैन्य, मोह, भय और परित्रास का भाव मन में नहीं लाती। इन सबसे रहित होकर वह ऋतुओं के अनुकूल पथ्य भोजन, वस्त्र, माला, अलंकार आदि का उपयोग करती। इस प्रकार वह सुखपूर्वक गर्भ को वहन करने लगी।
मेघकुमार का जन्म
(८७) तए णं सा धारिणी देवी णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाण य राइंदियाणं वीइक्कंताणं अद्धरत्त-कालसमयंसि सुकुमालपाणिपायं जाव सव्वंगसुंदरं दारगं पयाया।
शब्दार्थ - अद्धरत्त - अर्द्धरात्रि, सव्वंग - सर्वांग, पयाया - जन्म दिया।
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