Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
प्रथम अध्ययन - मेघकुमार का जन्म
८७
भावार्थ - रानी धारिणी ने नौ माह तथा साढे सात रात-दिन पूर्ण होने पर अर्द्धरात्रि के समय हाथ-पैर आदि सभी सुंदर अंगों से सुशोभित शिशु को जन्म दिया।
(८८) - तए णं ताओ अंगपडियारियाओ धारिणिं देविं णवण्हं मासाणं जाव दारगं पयायं पासंति २ ता सिग्धं तुरियं चवलं वेइयं जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेणियं रायं जएणं विजएणं वद्धावेंति २ त्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी -
भावार्थ - अंगपरिचारिकाओं ने देखा, रानी धारिणी ने पुत्र को जन्म दिया है। वे अत्यंत हर्षित होकर अतिशीघ्र, वेगपूर्वक राजा के पास आई। उन्हें जय-विजय शब्दों द्वारा वर्धापित किया। हाथ जोड़ कर, मस्तक झुका कर, नमन करते हुए, इस प्रकार बोली।
(८६) एवं खलु देवाणुप्पिया! धारिणी देवी णवण्हं मासाणं जाव दारगं पयाया, . तं णं अम्हे देवाणुप्पियाणं पियं णिवेएमो पियं भे भवउ। तए णं से सेणिए राया तासिं अंगपडियारियाणं अंतिए एयमझें सोच्चा णिसम्म हट्ठतुट्ठ० ताओ अंगपडियारियाओ महुरेहिं वयणेहिं विउलेण य पुप्फगंधमल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ स०. २त्ता मत्थयधोयाओ करेइ पुत्ताणुपुत्तियं वित्तिं कप्पेइ २ त्ता पडिविसज्जेइ।
शब्दार्थ - मत्थयधोयाओ - दासत्व से मुक्त, वित्तिं - जीविका, कप्पेइ - प्रदान की।
भावार्थ - हे देवानुप्रिय! देवी धारिणी ने पुत्र को जन्म दिया है। हम आपको यह प्रिय संदेश निवेदित करती हैं। आपके लिए यह प्रीतिप्रद हो।
राजा श्रेणिक उन परिचारिकाओं से यह सुनकर बहुत प्रसन्न एवं उल्लसित हुआ और उनको मधुर वचन, प्रचुर पुष्प, सुगंधित द्रव्य, मालाओं एवं अलंकारों द्वारा सत्कारित एवं सम्मानित किया। उनको दासत्व से मुक्त कर दिया तथा उनके लिए पुत्र-पौत्रों पर्यंत-भावी पीढ़ियों तक के लिए, आजीविका बांध दी। ऐसा कर उन्हें विदा किया।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org