Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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लियाभिरामं जहारिहं ठिइवडियं दसदिवसियं करेह २ त्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह
तेवि करेंति २ तहेव पच्चप्पिणंति ।
शब्दार्थ अट्ठारस
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सेणिप्पसेणिओ अठारह,
ठिइवडियं उस्सुकं
कुंभकारादि जातियाँ, उपजातियाँ, राजकुल परंपरानुसार पुत्र जन्मोत्सव पर की जाने वाली विशिष्ट रीतिरिवाजें, शुल्क - चुंगी की माफी, उक्करं
बेगार लेने हेतु करमुक्तता, अभडप्पवेसं नियुक्त राज्याधिकारियों का अप्रवेश, अदंडिमकुदंडिमं - दण्डयोग्य अपराधियों से जुर्माना न लेना, अधरिमं अधारणिज्जं ऋण मुक्त कराना, चाहने वालों के लिए राज्य द्वारा ऋण की व्यवस्था, अणुद्धयमुइंगं - मृदंग आदि वाद्य निरंतर बजाए जाना, अमिलायमल्लदामं ताजे फूलों से बनी मालाएँ, णाडइज्जकलियं - नृत्य से सुशोभित, तालायराणुचरियं - ताल देने में कुशल दर्शक युक्त, पमुइय - प्रमुदित, पक्कीलिय प्रक्रीडित - हास्य विनोद युक्त, जहारिहं - यथायोग्य, ठिइवडियं - स्थितियुक्त ।
भावार्थ - राजा श्रेणिक ने अठारह जातियों एवं उपजातियों के लोगों को बुलाया और कहा- देवानुप्रियो ! राजगृह के भीतरी और बाहरी भाग में राजवंश की परंपरा के अनुसार पुत्र जन्मोत्सव के उपलक्ष में कोई चुंगी एवं कर नहीं लिया जाए। बेगार लेने हेतु नियुक्त राजपुरुष किसी के यहाँ प्रवेश न करें। दंडनीय अपराधियों से जुर्माना न लिया जाए। जिनके भी जो ऋण हैं, वे राज्य की ओर से अदा कर दिए जायें, जरूरत मंदों को राज्य की ओर से ऋण दिया जाये। निरंतर मृदंग आदि बजते रहें, ताजे फूलों की मालाएँ, स्थान-स्थान पर लटकाई जाएँ । अनेक संहृदय दर्शकों द्वारा दी जाती तालध्वनि अनुगत कुशल गणिकाओं द्वारा अनवरत नृत्य किए जाते रहें। आमोद-प्रमोद एवं हास-परिहासमय सुंदर वातावरण बना रहे। दस दिनों के लिए ऐसी यथेष्ट व्यवस्था करो, करवाओ एवं मेरे आदेश के पालन की सूचना दो 1
उन्होंने ऐसा कर राजा को निवेदित किया ।
प्रथम अध्ययन जन्मोत्सव
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दह
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(६२)
तणं से सेणिए राया बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे सइएहि य साहस्सिएहि य सयसाहस्सिएहि य जाएहि य दाएहि य भाएहि य दलयमाणे २ पडिच्छेमाणे २ एवं च णं विहरइ ।
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