Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
विवेचन
प्राचीन काल में इस देश में दासप्रथा और दासीप्रथा प्रचलित थी । दासदासियों की स्थिति लगभग पशुओं जैसी थी। उनका क्रय-विक्रय होता था । बाजार लगते थे। जीवन पर्यंत उन्हें गुलाम होकर रहना पड़ता था। उनका कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं था। कोई विशिष्ट हर्ष का प्रसंग हो और स्वामी प्रसन्न हो जाये तभी दासता अथवा दासीपन से उनको मुक्ति मिलती थी। राजा श्रेणिक का प्रसन्न होकर दासियों को दासीपन से मुक्त कर देना इसी प्रथा का सूचक है।
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जन्मोत्सव (१०)
तए णं से सेणिए राया ( पच्चूसकालसमयंसि ) कोडुंबियपुरिसे सहावेड़, सद्दावेत्ता एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! रायगिहं णयरं आ जाव परिगीयं करेह २ त्ता चारग-परिसोहणं करेह २ त्ता माणुम्माण - वद्धणं करेह २ ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह जाव पच्चप्पिणंति । शब्दार्थ पच्चूसकालसमयंसि प्रातः काल के समय, परिगीयं गीत ध्वनियुक्त चारगपरिसोहणं कारागार से बंदी जनों को मुक्त करना, माणुम्माणवद्धणं - माप-तौल की वस्तुओं मूल्य में कमी।
भावार्थ - राजा श्रेणिक ने कोटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा कि राजगृह नगर को सम्मार्जन, जलसेचन - छिड़काव आदि से तथा पुष्पों की सुगंध से, गीत-ध्वनि से, आनंदोत्साह युक्त वातावरणमय बनाओ । कारागार से कैदियों को मुक्त कर दो। यह सब कर मुझे ज्ञापित करो ।
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(19)
तणं से सेणि या अट्ठारस-सेणिप्पसेणीओ सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासीगच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! रायगिहे णयरे अब्धिंतरबाहिरिए उस्सुक्कं उक्करं अभडप्पवेसं अदंडिम - कुदंडिमं अधरिमं अधारणिज्जं अणुद्धयमुइंगं अमिलायमल्लदामं गणियावर-णाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरियं पमुइय-पक्की -
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