Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम अध्ययन विविध कलाओं की शिक्षा
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क्रीड़ा कराने वाली तथा गोद में रखने वाली - इन पंच विध धायों ने बालक को यथोचित रूप में संभाला। इनके अतिरिक्त बालक मेघकुमार कुबड़ी, बौनी एवं विकलांग दासियों तथा किरात, वकुस, यवन (यूनान) परहनिक, ईशनिक, धौरुकिन, ल्हासक, लकुस, द्रविड़, सिंहल, अरब, पुलिंद, पक्कण, बहल, मुरुंडि, सबर, फारस (ईरान) - इत्यादि विभिन्न देशों की, परदेश- अपने से भिन्न देशवर्ती, राजगृह नगर को सुशोभित करने वाली इंगित - मुखादि के संकेत, चिंतितमनोभाव,प्रार्थित-अभिलषित को जानने में कुशल, अपने-अपने देश की वेशभूषा से युक्त, निपुणातिनिपुण तथा विनीत दासियों, अंतःपुर में नियुक्त नपुंसकों, वृद्ध सेवकों तथा व्यवस्थापकों के समुदाय से घिरा हुआ रहने लगा। वह उन द्वारा एक हाथ से दूसरे हाथ में, एक गोद से दूसरी गोद में गा-गाकर बहलाया जाता हुआ, अंगुली थामकर चलना सिखाया जाता हुआ, क्रीड़ा पूर्वक लालन-पालन किया जाता हुआ, सुंदर मणिमंडित आंगन पर घुमाया जाता हुआ, समशीतोष्ण वातावरण युक्त पर्वत गुफा में बढ़ते चंपक वृक्ष की तरह, वह सुखपूर्वक बड़ा होने लगा ।
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तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो अणुपुव्वेणं णामकरणं च पजेमणगं च एवं चंकमणगं च चोलोवणयं च महया - महया इड्ढी सक्कार समुदएणं करिंसु ।
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शब्दार्थ पजेमणगं अन्नप्राशन क्रिया - शिशु के मुँह में प्रथम बार अन्न देना, चंकमणगं- इधर-उधर चलाना, चोलोवणयं - शिखा धारण-चोटी रखना, इड्ढी - ऋद्धि । भावार्थ - मेघकुमार के माता-पिता ने क्रमशः उसका नामकरण, अन्नप्राशन, पाद-चलन, - शिखाधारण आदि संस्कार अत्यन्त ऋद्धि तथा सत्कारपूर्वक संपन्न किए।
विविध कलाओं की शिक्षा
(८)
तणं तं मेहं कुमारं अम्मापियरो साइरेगट्ठ - वासजायगं चेव गब्भट्ठमे वासे सोहणंसि तिहि-करण - मुहुत्तंसि कलायरियस्स उवणेंति । तए णं से कलायरिए मेहं कुमारं लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुय - पज्जवसाणाओ बावत्तरिं कलाओ सुत्तओ य अत्थओ य करणओ य सेहावेइ सिक्खावेइ ।
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