Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
शब्दार्थ - जोह - योद्धा, भड - सुभट-योद्धा, चडगर- चटकर-राज चिह्नधारी पुरुष, वंद - समूह, परिक्खत्ता - घिरी हुई, दुंदभिणिग्योसणाइयरवेणं - बजते हुए नगाडों की
आवाज सहित, उज्जाणेसु - पुष्प प्रधान वृक्ष, लता युक्त उद्यानों, काणणेसु - पर्वतीय तलहटी में फैले हुए वृक्षों के बीच, वणेसु - नगर से दूरवर्ती सुंदर वृक्षों से युक्त वनभूमि, वणसंडेसु - एक जातीय आमादि पेड़ों से युक्त बगीचों, गुच्छेसु - गुच्छाकार लता समूहों, गुम्मेसु - सहज सुसज्ज लता मंडपों, लयासु - चंपकादि लताओं के मण्डपों, वल्लीसु - नागर बेलादि के झुरमुटों, कंदरासु - पर्वतों की बड़ी बड़ी गुफाओं, दरीसु - लघु गुफाओं, चुण्ढीसु - अल्पजलयुक्त सरोवरों, दहेसु - पानी के गहरे गड्ढों, कच्छेसु - नदी तटों, विवरएसु - स्वाभाविक झरनों के जल से आपूरित गौं, अच्छमाणी य - क्षण भर विश्राम करती हुई, पेच्छमाणी - देखती हुई, मज्जमाणी - सम्मान करती हुई, पल्लवाणि- कोमल पत्ते, माणेमाणी - पसंद करती हुई, अग्यायमाणी - सूंघती हुई. परिभुंजमाणी - परिभोगसुखभोग करती हुई, सव्वओ - सब ओर, आहिंडइ - घूमती है।
भावार्थ - उत्तम हाथी पर सवार अपने पीछे-पीछे चलते राजा श्रेणिक सहित रानी धारिणी आगे बढ़ने लगी। वह चतुरंगिणी सेना सुभटों एवं राज चिह्न धारक पुरुषों से चारों ओर से घिरी थी। इस प्रकार समृद्धि, धुति, वैभव आदि राजसी ठाट-बाट एवं नगारों के निर्घोष के साथ, राजगृह नगर के राजमार्गो, 'तिराहों, चौराहों आदि में से होती हुई चलती गई। नागरिकवृंद उसका स्थान-स्थान पर अभिनंदन करते रहे। इस प्रकार वह वैभारगिरि की ओर आई। पर्वत की तलहटी में विद्यमान पुष्पाच्छादित सुहावने वृक्षों, उद्यानों काननों, वनों तथा लता कुंजों, कंदराओं, गुफाओं, पानी के गों, झरनों, नदी तटों इत्यादि का अवलोकन करती हुई, निमजनस्नान आदि करती हुई, सुरभित पुष्पों के सौरभ सुस्वादु फल आदि के परिभोग का आनंद लेती हुई, चारों और परिभ्रमण करने लगी।
इस प्रकार उसने अत्यंत आनंदपूर्वक अपना दोहद परिसंपन्न किया।
तए णं सा धारिणी देवी सेयणय-गंधहस्थि-दूरूडा समाणी सेणिएणं हत्थिखंध-वरगएणं पिडओ २ समणुगम्म-माणमग्गा हय-गय जाव रवेणं जेणेव रायगिहे णयरे तेणेव उवागच्छड, उवागच्छित्ता रायगिहं जयरं मज्झमझेणं
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