Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
समोहण्णइ - समुद्घात करता है, सगज्जइयं - गर्जना सहित, सविज्जुयं - बिजली सहित, सफुसियं - जल-बिंदुओं सहित, णिणाओ - निनाद, पाउससिरिं वर्षा ऋतु की शोभा को । भावार्थ - अभयकुमार द्वारा यों कहे जाने पर देव हर्ष एवं प्रसन्नता के साथ बोला देवानुप्रिय ! तुम शांत, निश्चिंत एवं विश्वस्त रहो। मैं तुम्हारी छोटी माता धारिणी देवी के दोहद को पूर्ण करता हूँ। ऐसा कहकर, वह देव अभयकुमार के पास से निकलता है, निकल कर उत्तर-पूर्व दिशा में, वैभार गिरि पर, उसने वैक्रिय - लब्धि द्वारा समुद्घात किया । संख्येय योजन परिमित दण्ड का निष्कासन किया। दूसरी बार भी उसने वैक्रिय समुद्घात किया तथा, गर्जना और बिजली से युक्त जल की बूँदें बरसाते हुए, पाँच वर्णों के मेघों की ध्वनि से शोभित, दिव्य सुंदर वर्षा ऋतु को विक्रिया द्वारा प्रकट किया। वैसा कर वह जहाँ अभयकुमार था, वहाँ आया और उसे इस प्रकार कहा ।
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(७४)
एवं खलु देवाणुप्पिया! मए तव पियट्टयाए सगज्जिया सफुसिया सविज्जुया दिव्वा पाउससिरी विउव्विया, तं विणेउ णं देवाणुप्पिया! तव चुल्लमाउया धारिणी देवी अयमेयारूवं अकालदोहलं ।
शब्दार्थ - पियट्टयाए - प्रियता - प्रसन्नता के लिए, विणेउ - पूर्ण करे।
भावार्थ - देवानुप्रिय ! मैंने तुम्हारी प्रसन्नता के लिए गर्जना, बिजली और जल बिन्दुओं से युक्त, दिव्य वर्षा ऋतु की शोभा, विक्रिया द्वारा उत्पन्न की है। तुम्हारी छोटी माता धारिणी देवी अब अपने दोहद को पूर्ण करे ।
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दोहद की संपन्नता
(७५)
तए णं से अभए कुमारे तस्स पुव्वसंगइयस्स सोहम्मकप्पवासिस्स देवस्स अंतिए एयमट्ठ सोच्चा णिसम्म हट्ठतुट्ठे सयाओ भवणाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणामेव सेणिए राया तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल
जाव अंजलि कट्टु एवं वयासी
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