________________
प्रथम अध्ययन - विक्रियाजनित मेघों का प्रादुर्भाव
__७६
एवं खलु देवाणुप्पिया! मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारूवे अकालदोहले पाउन्भूए - धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ! तहेव पुव्वगमेणं जाव विणिज्जामि। तं णं तुमं देवाणुप्पिया! मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारूवं अकालदोहलं विणेहि।
शब्दार्थ - पारेइ - पूर्ण करता है, विणेहि - पूर्ण करूँ।
भावार्थ - यह सुनकर अभयकुमार ने आकाश स्थित अपने पूर्वजन्म के मित्र देव को देखा। वह हृष्ट एवं तुष्ट हुआ। अपने पौषध को पूर्ण किया तथा हाथ जोड़कर यों बोला - देवानुप्रिय! मेरी छोटी माता धारिणी को अकाल में मेघ-दर्शन का दोहद उत्पन्न हुआ। उसके मन में यह भावना आई कि वे माताएँ धन्य हैं, जो अपने दोहद-जनित मनोरथ को पूर्ण करती हैं। (यहाँ एतद्विषयक संपूर्ण पूर्व पाठ ग्राह्य है।) देवानुप्रिय! इसलिए आप मेरी छोटी माता धारिणी के दोहद को पूर्ण कर दो। विक्रियाजनित मेघों का प्रादुर्भाव
(७३) तए णं से देवे अभएणं कुमारेणं एवं वुत्ते समाणे हट्टतुढे अभयं कुमारं एवं वयासी - तुमं णं देवाणुप्पिया! सुणिव्वुय-वीसत्थे अच्छाहि, अहं णं तव चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारूवं दोहलं विणेमि-त्तिक? अभयस्स कुमारस्स अंतियाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता उत्तरपुरस्थिमे णं वेभारपव्वए वेउव्विय समुग्घाएणं समोहण्णइ समोहण्णित्ता संखेजाइं जोयणाई दंडं णिसिरइ, जाव दोच्चं पि वेउव्विय-समुग्घाएणं समोहण्णइ, समोहण्णित्ता खिप्पामेव सगज्जइयं सविज्जुयं सफुसियं तं पंचवण्ण-मेह-णिणाओ-वसोहियं दिव्वं पाउससिरिं विउव्वइ २ त्ता जेणेव अभए कुमारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अभयं कुमारं एवं वयासी
शब्दार्थ - सुणिव्वुय - सुनित-शांत, वीसत्थे - विश्वस्त, अच्छाहि - रहो, समुग्घाएणं
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org