Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम अध्ययन - दोहदपूर्ति की चिंता
आँखे नीचे की ओर झुक गई। उसे मनोविनोद-मनोरंजन क्रियाएँ अप्रिय लगने लगी। उसका मन बड़ा दुःखित होने लगा। उसकी दृष्टि जमीन पर गड़ गई। उसे कर्तव्याकर्तव्य का कोई भान ही न रहा तथा वह आर्तध्यान में निमग्न हो गई।
(४६) तए णं तीसे धारिणीए देवीए अंगपडियारियाओ अभिंतरियाओ दासचेडियाओ धारिणिं देविं ओलुग्गं जाव झियायमाणिं पासंति २ त्ता एवं वयासी - किण्णं तुमे देवाणुप्पिए! ओलुग्गा ओलुग्गसरीरा जाव झियायसि?
शब्दार्थ - अंगपडियारियाओ - अंगपरिचारिकाएँ-शरीर की देखभाल करने वाली, दासचेडियाओ - दासचेटिकाएँ-दासियाँ। - भावार्थ - रानी धारिणी की व्यक्तिगत सेविकाओं ने जब उन्हें चिंता से जीर्ण, पीड़ित और आर्तध्यान युक्त देखा तो बोली - देवानुप्रिये! आपकी ऐसी स्थिति क्यों हो रही है, आप आर्तध्यान क्यों कर रही है?
(४७) . तए णं सा धारिणी देवी ताहिं अंगपडियारियाहिं अभिंतरियाहिं दासचेडियाहिं एवं वुत्ता समाणी ताओ दासचेडियाओ णो आढाइ, णो परियाणाइ, अणाढायमाणी. अपरियाणमाणी तुसिणीया संचिट्ठइ।
शब्दार्थ - ताहिं - उनके द्वारा, एवं - इस प्रकार, वुत्ता समाणी - कहे जाने पर, आढाइ - आदर करती है, परियाणाइ - गौर करती हैं, तुसिणीया - मौन, संचिट्ठइ - संस्थित होती है।
भावार्थ - सेविकाओं द्वारा जो यह कहा गया, रानी धारिणी ने अन्यमनस्क होने के कारण न उनका आदर ही किया और न उस पर कोई गौर ही किया। वह चुपचाप बैठी रही।
(४८) तए णं ताओ अंगपडियारियाओ, अभिंतरियाओ दासचेडियाओ धारिणिं
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