Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम अध्ययन - अभय द्वारा दोहद पूर्ति का आश्वासन
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शब्दार्थ - पुत्ता - पुत्र, चुल्लमाउयाए - छोटी माता, आगयं - आए हुए, याणामिजानता हूँ।
- भावार्थ - अभयकुमार द्वारा यों कहे जाने पर महाराज श्रेणिक ने उसे कहा-पुत्र! तुम्हारी छोटी माता धारिणी के गर्भ के दो माह व्यतीत हो जाने पर तीसरे महीने में, जो गर्भवती नारियों के दोहद का समय है, ऐसा दोहद उत्पन्न हुआ - उसके मन में ऐसा भावोद्रेक हुआ कि वे माताएँ धन्य हैं, जो अकाल समय में आकाश में विविध वर्गों के बरसते हुए मेघों को देखने का आनंद लेती हैं (यहाँ पूर्व का सारा वर्णन गाह्य है)। पुत्र! तब मैंने धारिणी देवी के अकाल दोहद के संबंध में बहुत प्रकार से खोज की किंतु समाधान नहीं पा सका। इससे मेरे मन पर बहुत चोट पहुँची और मुझे आर्तध्यान होने लगा। तुम्हारा आना भी मैं जान नहीं सका। इसी कारण मेरा मन आहत और चिंतित है। अभय द्वारा दोहद पूर्ति का आश्वासन
___ (६३) तए से अभए कुमारे सेणियस्स रण्णो अंतिए. एयमढं सोच्चा णिसम्म हट्ट जाव हियए सेणियं रायं एवं वयासी - “मा णं तुब्भे ताओ! ओहयमणसंकप्पा जाव झियायह। अहं णं तहा करिस्सामि जहा णं मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारूवस्स अकाल दोहलस्स मणोरह-संपत्ती भविस्सई" त्तिकटु सेणियं रायं ताहि इट्ठाहिं कंताहिं जाव समासासेइ।
भावार्थ - अभयकुमार ने महाराज श्रेणिक से यह सुना। वह हर्षित होकर बोला - "पिताश्री! आप अपने मन को खिन्न, उद्विग्न न रखें, दुश्चिंता न करें। मैं वैसा उपाय करूंगा, जिससे मेरी छोटी माता धारिणी देवी के अकाल दोहदजनित मनोरथ की पूर्ति होगी।" यों कह कर उसने राजा श्रेणिक को बड़े ही मधुर, प्रिय और मनोज्ञ शब्दों में आश्वासन दिया।
(६४) तए णं सेणिए राया अभएणं कुमारेणं एवं वुत्ते समाणे हडतुढे जाव अभयं कुमारं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारिता सम्माणित्ता पडिविसज्जेइ।
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