Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम अध्ययन - धारिणी देवी का दोहद
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विवेचन - आगमों में अनेक स्थानों पर ऐसे वर्णन आते हैं, जो साहित्यिक दृष्टि से बड़े महत्त्वपूर्ण हैं। इन विस्तृत काव्य-सुषमा से विभूषित वर्णनों के पीछे रचनाकारों का एक विशेष प्रयोजन रहा है।
भाषा का जीवन में सर्वाधिक महत्त्व है। यदि वह नहीं होती तो मानव ने ऐहिकता एवं पारलौकिकता के संबंध में जो वैचारिक विकास किया है, संभवतः वह हो नहीं पाता। साहित्य का अनुपम भंडार, अध्यात्म एवं संस्कृति की अनुपम विरासत, जो आज हमें वाङ्मय के रूप में उपलब्ध है, अप्राप्त रहती। वैचारिक पृष्ठभूमि को आकर्षक, आह्लादप्रद, शांतिप्रद बनाने हेतु भाषा की सुष्टुता और वर्णन की सुरम्यता, मनोज्ञता पर विशेष बल देने की अपनी सार्थकता है। अलंकारों के रूप में भाषा की सुंदरता को बढ़ाने हेतु एक विशेष विधा का विकास हुआ। इस विधा का अति प्राचीन रूप हम आगम-साहित्य में पाते हैं, जो आगे चलकर काव्य-शास्त्र के क्षेत्र में विकसित हुआ। भामह, दण्डी, उदंभट आदि आचार्यों ने अलंकारों को काव्य-शोभा का अनन्य उन्नायक तत्त्व माना। यहाँ यह भी ज्ञातव्य है, काव्य का लक्ष्य केवल श्रोत्रेन्द्रिय आदि का आनंद ही नहीं है, वरन् यदि वह अध्यात्म का मोड़ ले ले तो परम शांति, निवृत्ति एवं आत्म-समाधि का भी संसाधक होता है। सुप्रसिद्ध काव्यशास्त्री आचार्य मम्मट ने 'सद्यः परनिर्वृतये' पद द्वारा काव्य से सधने वाली आध्यात्मिक उन्नति की ओर संकेत किया है। आगमों में सरस, अलंकृत. वर्णन के जो प्रसंग आते हैं, वे मानव की सहज माधुर्य एवं सौंदर्य प्रवण मनोवृत्ति को दृष्टि में रखते हुए ही उपस्थापित किए गए हैं, जिनसे जन-जन को उनका पठन, श्रवण करने की प्रेरणा मिल सके। यों आगमिक वाङ्मय में अनुप्रविष्ट होने के पश्चात् आत्मशुद्धिकारी, कर्म क्षयकारी, संयममूलक, तपश्चरण, वैराग्य, संवेग, निर्वेद आदि की दिशा में अग्रसर होने का उनमें भाव उत्पन्न होना संभावित है, क्योंकि यही आत्मा के स्वाभाविक सुंदर मूलगुण हैं। - इस सूत्र में मेघ का जो आलंकारिक वर्णन आया है, वह वास्तव में अनूठा है। इसे प्राकृत के अत्युत्तमंगद्य काव्य की संज्ञा दी जा सकती है। अनुप्रास, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अनेक अलंकारों का जिस सहजता से इस वर्णन में समावेश हुआ है, वह आश्चर्यजनक है। जहाँ शब्द संरचना में अलंकार अप्रयत्ल-साध्य होते हैं, वहाँ काव्यात्मक शोभा अद्भूत रूप ले
*काव्य प्रकाश १,२
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