Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में स्वप्नपाठकों द्वारा फलादेश में कथित 'रज्जवती राया भविस्सइ, अणगारे वा भावियप्पा' यह वाक्यांश ध्यान देने योग्य है। इससे यह तो स्पष्ट है ही कि अतिशय पुण्यशाली आत्मा ही मानव जीवन में अनगार-अवस्था प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त कर सकती है। इसके अतिरिक्त इससे यह भी विदित होता है कि बालक के माता-पिता को. राजा बनने वाले पुत्र को पाकर जितना हर्ष होता था, मुनि बनने वाले बालक को प्राप्त करके भी उतने ही हर्ष का अनुभव होता था। तत्कालीन समाज में धर्म की प्रतिष्ठा कितनी अधिक थी, उस समय का वातावरण किस प्रकार धर्ममय था, यह तथ्य इस सूत्र से समझा जा सकता है।
(३६) तए णं सेणिए राया तेसिं सुमिणपाढगाणं अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म हट्ठ जाव हियए करयल जाव एवं वयासी।
भावार्थ - राजा श्रेणिक स्वप्न का फल प्रतिपादित करने वाले उन स्वप्नशास्त्रवेत्ताओं के इस कथन को सुनकर अत्यन्त हर्षित एवं आनन्दित हुए। वे हाथ जोड़ कर उनसे इस प्रकार बोले।
(४०) एवमेयं देवाणुप्पिया! जाव जं णं तुन्भे वयह - तिकटु तं सुमिणं सम्म पडिच्छइ २ ता ते सुमिणपाढए विउलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थगंध-मल्लालंकारेण य सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारिता सम्माणित्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयइ २ ता पडिविसज्जेइ।
शब्दार्थ - जं - जो, वयह - कहते हो, साइमेणं - स्वाद्य-स्वाद युक्त, मल्ल - माला, जीवियारिहं - जीवन-निर्वाह योग्य, पीइदाणं - प्रीतिदान, दलयइ - देता है, पडिविसजेड़ - प्रतिविसर्जित करता है।
भावार्थ - देवानुप्रियो! आप जैसा कहते हैं, वैसा ही तथ्य पूर्ण है, सत्य है, यों कह कर राजा ने स्वप्न फल को स्वीकार किया, आदर दिया। स्वप्न वाचकों का अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, वस्त्र, अलंकार, माला आदि द्वारा सत्कार किया। प्रसन्नता पूर्वक उनको जीवन निर्वाह योग्य प्रीति दान देकर विदा किया।
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