Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम अध्ययन - स्वप्न पाठकों द्वारा फलादेश
.. स्वप्न पाठकों द्वारा फलादेश
(३५) तए णं ते सुमिणपाढगा सेणियस्स रण्णो अंतिए एयमढे सोच्चा-णिसम्महट्टतुट्ठ जाव हियया तं सुमिणं सम्मं ओगिण्हंति २ त्ता ईहं अणुपविसंति २त्ता अण्णमण्णेण सद्धिं संचालेंति २ त्ता तस्स सुमिणस्स लद्धट्ठा गहियट्ठा पुच्छियट्ठा विणिच्छियट्ठा अभिगयट्ठा सेणियस्स रण्णो पुरओ सुमिणसत्थाई उच्चारेमाणा २ एवं वयासी -
शब्दार्थ - अण्णमण्णेण - अन्योन्य-परस्पर, संचालेंति - चिंतन-मनन करते हैं, लद्धट्ठालब्धार्थ-अर्थ को उपलब्ध किया, गहियट्ठा - गृहीत किया, पुच्छियट्ठा - परस्पर पूछ कर विचार-विमर्श किया, विणिच्छियट्ठा - निश्चय किया, अभिगयट्ठा - सम्यक् ज्ञात किया, पुरओ - आगे, सुमिणसत्थाई - स्वप्न शास्त्रों का, उच्चारेमाणा - उच्चारण करते हुए। - भावार्थ - स्वप्न पाठक राजा का कथन सुनकर हृदय में अत्यधिक हृष्ट, पुष्ट, आनंदित हुए। उन्होंने उस स्वप्न को सम्यक् अवगृहीत किया, आत्मसात किया। वैसा कर उन्होंने ईहा में - तद्विषयक गवेषणात्मक चिंतन में प्रवेश किया। परस्पर विचार-विमर्श किया। स्वप्न के फल को अवगत किया एवं निश्चय किया। तदनंतर श्रेणिक राजा के समक्ष स्वप्न शास्त्र के सिद्धान्तों की चर्चा करते हुए, वे बोले।
(३६) एवं खलु अम्हं सामी! सुमिणसत्थंसि बायालीसं सुमिणा, तीसं महासुमिणा बावत्तरि सव्वसुमिणा दिट्ठा। तत्थ णं सामी! अरहंतमायरो वा, चक्कवट्टिमायरो वा, अरहंतंसि वा, चक्कवर्टिसि वा, गब्भं वक्कम-माणंसि एएसिं तीसाए महासुणिणाणं इमे चउद्दसमहा सुमिणे पासित्ता णं पडिबुझंति तंजहां -
गय-उसभ-सीह-अभिसेय, दाम-ससि-दिणयरं झयं कुंभं। पउमसर-सागर-विमाण, भवण-रयणुच्चय-सिहि च॥ .
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