Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम अध्ययन - स्वप्न फल-संसूचन
३५
भावार्थ - वह बाल्यावस्था को क्रमशः पार करता हुआ विद्या, कला आदि में परिपक्वनिष्णात होगा। युवा होकर शूर, वीर तथा पराक्रमशाली होगा। विशाल सेना एवं वाहनों का अधिनायक-स्वामी होगा। वह अनेक राज्यों का अधिपति-राजा होगा। देवी! तुमने आरोग्य, तुष्टि, दीर्घायुष्य एवं कल्याणसूचक स्वप्न देखा है। इस प्रकार कह कर राजा स्वप्न के मंगल की प्रशंसा करने लगा।
(२३) ____ तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणी हट्टतुट्ठा जाव हियया करयल-परिग्गहियं जाव अंजलिं कटु एवं वयासी। . शब्दार्थ - सेणिएणं रण्णा - श्रेणिक राजा द्वारा, एवं - इस प्रकार, वुत्ता - कहे जाने पर।
भावार्थ - राजा श्रेणिक द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर रानी धारिणी हर्षित, संतुष्ट एवं आनन्दित हुई। अपने दोनों हाथ जोड़कर उन्हें मस्तक पर आवर्तित कर, अंजलि बांधे वह राजा से कहने लगी। .
(२४) .. __एवमेयं देवाणुप्पिया! तहमेयं देवाणुप्पिया! अवितहमेयं असंदिद्धमेयं इच्छियमेयं देवाणुप्पिया! पडिच्छियमेयं इच्छियपडिच्छियमेयं सच्चे णं एसमढे जं णं तुन्भे वयह त्ति कटु तं सुमिणं सम्म पडिच्छइ २ ता सेणिएणं रण्णा अब्भणुण्णाया समाणी णाणा-मणिकणग-रयण-भत्तिचित्ताओ. भद्दासणाओ अब्भुढेइ २ त्ता जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयंसि सयणिज्जंसि णिसीयइ २त्ता एवं वयासी -
. शब्दार्थ - एवमेयं - यह ऐसा ही है, तहं - तथ्य, अवितहं - अवितथ-असत्य रहित, असंदिद्धं - असन्दिग्ध-संदेह रहित, इच्छियं - इच्छित-इष्ट, पडिच्छियं - प्रतिच्छित-अत्यधिक इच्छित-अभीष्ट, सच्चे - सत्य, एस - यह, तुब्भे - आप, वयह - कहते हैं, सम्मं - सम्यक्-भलीभाँति, पडिच्छइ - स्वीकार करती है, अब्भुढेई - अभ्युत्थित होती है-उठती है।
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