Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम अध्ययन श्रेणिक का उपस्थान शाला में आगमन
महारानी का चिंतन
(२५)
उत्तमे पहाणे मंगल्ले सुमिणे अण्णेहिं पावसुमिणेहिं पडिहम्मिहित्ति कट्टु देवयगुरु जणसंबद्धाहिं पसत्थाहिं धम्मियाहिं कहाहिं सुमिणजागरियं पडिजागरमाणी २ विहर
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शब्दार्थ - मा- नहीं, मे - मेरा, पहाणे प्रधान-श्रेष्ठ, अण्णेहिं - दूसरे, पावसुमिणेहिंपापपूर्ण - अशुभ स्वप्नों द्वारा, पडिहम्मिहित्ति - प्रतिहत नष्ट हो जाए, पसत्थाहिं - प्रशांत - श्रेष्ठ, धम्मियाहिं - धार्मिक, कहाहिं - कथाओं द्वारा, सुमिण जागरियं स्वप्न जागरित - स्वप्न के संरक्षण हेतु जागरिका-निद्रा का त्याग, पडिजागरमाणी - प्रति जागृत रहती हुई ।
भावार्थ मेरा यह उत्तम श्रेष्ठ स्वप्न अन्य अशुभ स्वप्नों से कहीं नष्ट न हो जाए, यह सोचकर रानी धारिणी देव, गुरुजन विषयक प्रशस्त धार्मिक कथाओं - जीवनियों द्वारा अपने उत्तम स्वप्न के रक्षण हेतु जागरण करती रही ।
श्रेणिक का उपस्थान शाला में आगमन
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(२६)
तए णं सेणिए राया पच्चूसकाल समयंसि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! बाहिरियं उवट्ठाणसालं अज्ज सविसेसं परमरम्मं गंधोदग-सित्त- सुइय - सम्मज्जिओवलित्तं पंचवण्ण-सरस- सुरभि - मुक्कपुप्फ-पुंजोवयार- कलियं कालागरु-पवरकुंदुरुक्क तुरुक्क - धूव- डज्झतमघमघंत-गंधुद्धयाभिरामं सुगंध वरगंधियं गंधवट्टिभूयं करेह य कारवेह य करिता य कारवित्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।
शब्दार्थ - पच्चूसकाल समयंसि - प्रातः काल के समय, कोडुंबियपुरिसे - कौटुम्बिक पुरुषों को, सद्दावेड़ बुलाता है, खिप्पामेव - शीघ्र ही, उवट्ठाणसालं - उपस्थान शालाआज, सविसेसं - विशेष रूप से, परमरम्मं - अत्यंत रमणीय, गंधोदग
सभा भवन, अज्ज
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