Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
भावार्थ - रानी धारिणी ने राजा श्रेणिक से कहा - देवानुप्रिय! आपने जो स्वप्न का फल बताया-वह तथ्य पूर्ण-असत्य वर्जित एवं अत्यन्त इच्छित-अभीष्ट है। यों कहकर रानी ने उस स्वप्न को भलीभाँति सहेजा-अंगीकार किया। राजा की आज्ञा पा कर वह विविधमणि-स्वर्णरत्न-रचित चित्रांकित, उत्तम आसन से उठी तथा अपनी शय्या के पास आई, उस पर बैठी। बैठकर मन ही मन सोचने लगी।
विवेचन - रानी धारिणी द्वारा अपने पति, महाराज श्रेणिक को स्वप्न निवेदन, श्रेणिक द्वारा स्वप्न के शुभ, प्रशस्त, मंगलमय फल का प्रतिपादन, रानी द्वारा हर्षातिरेक, विनय एवं आभार पूर्वक उसका स्वीकरण इत्यादि के रूप में जो पिछले सूत्रों में वर्णन आया है, उससे यह स्पष्ट होता है कि हमारे देश में प्राचीन काल में पारिवारिकजनों के बीच परस्पर कितना सौहार्दपूर्ण, प्रीति पूर्ण व्यवहार था।
धारिणी राजा को अत्यन्त मधुर, मृदुल, विनम्र शब्दों में जगाती है तथा विधिवत् प्रणमन पूर्वक अपना स्वप्न निवेदित करती है। उसके फल की जिज्ञासा करती है। रानी के हृदय में अपने पति के प्रति जो अत्यधिक विनीतता, सहृदयता एवं स्निग्धता का भाव था, वह यहाँ स्पष्टतया प्रकट होता है।
राजा भी बड़े हर्ष, उल्लास और प्रीति पूर्ण शब्दों में रानी को स्वप्न का फल बतलाता है। यह उनके सुखमय दाम्पत्य जीवन का स्पष्ट निदर्शन है। कहा गया है - "यद् यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः"-बड़े आदमी जैसा आचार-व्यवहार करते हैं, सामान्यजन वैसा ही करते हैं, उनका अनुसरण करते हैं। “यथा राजा तथा प्रजा" यह कहावत इसी भाव को प्रकट करती है। ____ वह एक ऐसा युग था, जब लोगों के व्यवहार में परस्पर बड़ा आत्मीय भाव, सौजन्य एवं सौमनस्य था। व्यवहार में कर्कशता, रूक्षता और उद्दण्डता नहीं थी। व्यवहार की सुकुमारता, कोमलता और मधुरता में ही जीवन का आनन्द है, लोग यह जानते थे। इन पुराने उदाहरणों से आज के लोगों को अपने दैनन्दिन व्यवहार को सुन्दर एवं सौम्य बनाने की प्रेरणा प्राप्त करनी चाहिये। __ जिनका पारिवारिक एवं लौकिक जीवन सुकुमारता, सहृदयता एवं सद्भावना पूर्ण होता है, वे अपने धार्मिक जीवन में भी सहज ही अग्रसर होने में उत्साहित रहते हैं।
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