Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
सुगन्धित जल, सित्त - सिंचित, सुइय - शुचिक-पवित्र, साफ-सुथरी, संमज्जिय - सम्मार्जितकचरा आदि निकाल कर साफ की हुई, उवलित्तं - उपलिप्त-लीपी हुई-पोता पोंछा लगाई हुई, मुक्क - मुक्त-बिखरे हुए, पुप्फपुंजोवयारकलियं - पुष्प समूह के उपचार-सजावट से युक्त, कालागरु - काला अगर-एक सुगन्धित द्रव्य, पवरकंदुरुक्क - उत्तम कुन्दुरुक-एक उत्तम सुगन्धित पदार्थ, मघमघंत - महकती हुई, उद्धय - उधूत-प्रसृत या फैली हुई, अभिरामं - सुंदर, गंधवट्टिभूयं - गन्धवर्तिका (बाट) के सदृश, करेह - करो, कारवेह - कराओ, आणत्तियं - आज्ञप्तिका-आज्ञा, पच्चपिणह - प्रत्यर्पित करो-सूचित करो। .. ___ भावार्थ - तदनन्तर राजा श्रेणिक ने प्रातः काल के समय अपने कौटुम्बिक पुरुषोंपारिवारिक सेवकों को बुलाया और कहा कि हे देवानुप्रियो! आज बाहरी उपस्थानशाला (सभा भवन) को शीघ्र ही विशेष रूप से सुसज्जित करो। वहाँ अत्यन्त रमणीय, सुगंधित जल का छिडकाव कराओ। सफाई कराओ, पोता (पोंछा) लगवाओ। पाँच रंगों के ताजे, सुगंधित फूलों के समूह से उसे सजाओ। काले अगर, उत्तमकुंदुरुक लोबान आदि का धूप जलाओ, जिससे वह महकने लगे, सुगंधित वर्तिका की ज्यों सुंदर लगने लगे। ऐसा कर, करवाकर, मुझे वापस सूचित करो।
विवेचन - इस सूत्र में जो 'कोडुंबियपुरिसे' - कौटुम्बिक पुरुष शब्द आया है, वह राज परिवार के सेवकों-नौकरों का. सूचक है। उनको सेवक न कह कर कौटुम्बिक पुरुष कहा जाता था। यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। कौटुम्बिक पुरुष का अर्थ परिवार के लोग है। सेवकों के प्रति राजा आदि बड़े लोगों का भी सम्मान पूर्ण भाव और व्यवहार था। इससे यह प्रकट होता है कि उन्हें परिवार के व्यक्तियों के सदृश समझा जाता था। जो सुख-दुःख में साथ देते हों, उनको ऐसा समझा ही जाना चाहिये। इससे प्रकट है कि सेवा करने वालों का समाज में उस समय प्रतिष्ठा पूर्ण स्थान था।
(२७) तए णं ते कोडुंबियपुरिसा सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्ठा जाव पच्चप्पिणंति।
शब्दार्थ - वुत्ता समाणा - कहे जाने पर, पच्चप्पिणंति - प्रत्यर्पित करते हैं-सूचित करते हैं।
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