Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
दर्शनीय रूप युक्त, सण्ह - चिकना, मनोहर, बहुभत्तिसय चित्तट्ठाणं - सैकड़ों प्रकार के चित्रों से युक्त, ईहामिय - ईहामृग - मृग विशेष, उसभ वृषभ - बैल, तुर तुरग - अश्व, णर व्यालक - सर्प, किण्णर - व्यंतर विशेष - किन्नर, रुरु
मनुष्य, विहग - पक्षी, वालग
रूरू जातीय मृग, सरभ
४८
अंग हैं।
-
Jain Education International
-
अष्टापद, चमर
चमरी गाय, कुंजर - हाथी, वणलय
वनलता, पउमलय
पद्मलता, भत्तिचित्तं - विशिष्ट रचनामय चित्रयुक्त, सुखचिय - सुन्दर रूप में खचित, वरकणग सुंदर स्वर्णमयतार, पवरपेरंतदेसभागं - उत्तम किनारों से युक्त, अभिंतरियं - भीतरी भाग में, जवणियं यवनिका पर्दा, अंच्छावेइ - लगवाया,.
अत्थरग
अस्तरजस्क- - धूलमिट्टी रहित स्वच्छ, मउअ - मृदुक- मुलायम, मसूरग - तकिया, उच्छड्यं उच्छायित-ऊँचा उठा हुआ, वत्थ - वस्त्र, अंग सुहफासयं - अंग सुख स्पर्श-सुखद अंगस्पर्श युक्त, अट्टंग-महा- णिमित्त - सुत्तत्थ - पाढए - अष्टांग महानिमित्त सूत्रार्थ पाठक - अष्टांग महानिमित्त के व्याख्याता, विविह-सत्थ-कुसले - विभिन्न शास्त्रों में प्रवीण, सुमिणपाढए - स्वप्न शास्त्र पंडित ।
-
-
-
-
-
-
-
-
For Personal & Private Use Only
भावार्थ - राजा श्रेणिक ने अपने निकट उत्तर पूर्व दिशा भाग-ईशान कोण में श्वेत वस्त्र से ढके हुए, शांति कर्म मूलक मांगलिक उपचार युक्त आठ उत्तम आसन रखवाए। ऐसा कर उसने सभा के भीतर के भाग में पर्दा लगवाया, जो विभिन्न मणियों और रत्नों से मण्डित, अत्यधिक दर्शनीय रूप युक्त, बहुमूल्य, उत्तम वस्त्र निर्मित श्लक्षण चिकना था। उस पर अनेक पशु-पक्षी, वनलता, पद्मलता आदि के सुन्दर आकार युक्त चित्र अंकित थे। उस पर्दे के किनारे सुन्दर सोने के तारों द्वारा कलापूर्ण रीति से सज्जित थे । पर्दा लगवाने के बाद रानी धारिणी के लिए उत्तम आसन रखवाया। जो स्वच्छ, धवल उपधान सहित था । वह श्वेत वस्त्र से आवरित था। अंगों के लिए अतीव सुख-स्पर्श युक्त एवं कोमल था।
तदनंतर राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उनको कहा- देवानुप्रियो ! अष्टांगमहानिमित्तवेत्ता, विविध शास्त्र कुशल स्वप्नशास्त्र के व्याख्याताओं को बुलाने की आज्ञा दी तथा वैसा कर शीघ्र सूचित करने को कहा ।
भूकंप, उत्पात, स्वप्न, उल्कापात, अंगस्फुरण, स्वर, व्यंजन एवं लक्षण-ये महानिमित्त शास्त्र के अष्ट
-
-
www.jainelibrary.org