Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम अध्ययन - स्वप्नदर्शन
२७
में, सुत्त जागरा - कुछ सोती कुछ जागती, ओहीरमाणी - ऊंघती हुई, महं - महान्, अतिविशाल, रययकूडसण्णिहं- चांदी के पर्वत के शिखर के समान-अत्यन्त श्वेत, सोमं - सौम्य-प्रशस्त, सोमागारं - सौम्य आकार युक्त - सर्वांग सुन्दर, लीलायंतं - लीला-क्रीड़ा करते हुए-उल्लास युक्त, जंभायमाणं - जम्हाई लेते हुए, मुहमइगयं - मुख में प्रवेश करते हुए, गयं - हाथी को, पासित्ता - देखकर, पडिबुद्धा - जाग गई।
भावार्थ - एक समय का प्रसंग है - रानी धारिणी अपने श्रेष्ठ भवन में शय्या पर सो रही थी। वह भवन बड़ा ही सुरम्य सुहावना एवं कलात्मक रूप में निर्मित था। उसके बहिर्भाग में काष्ठ निर्मित अति सुन्दर आकार युक्त उच्च, प्रशस्त, चिकने स्तंभों पर मनोज्ञ शालभंजिकाएंपुतलियाँ उकेरी हुई थीं। उसकी स्वर्णनिर्मित, मणियों एवं रत्नों से जड़ी हुई स्तूपिकाएं - छत्राकार छोटे-छोटे शिखर-गुम्बज छज्जे एवं छिद्र युक्त गवाक्ष-झरोखे तथा अर्ध चन्द्राकार सोपान-सीढ़ियां ये सब बहुत ही मनोरम थे। दैनन्दिन आवश्यक कार्योपयोगी रचना से वह परिपूर्ण था। उस भवन ,पर कलात्मक निर्माण युक्त चन्द्रशालिकाएं-प्रशाल बड़े ही सुन्दर थे। गेरु आदि धातुओं से वह रंजित-रंगा था। उसका बाहरी भाग कली से पुता हुआ था, अत्यन्त सफेद था। कोमल पाषाण से घिसाई किये जाने के कारण वह बहुत चिकना था। उसका आंगन सफेद, लाल, पीले, हरे एवं नीले रत्नों से जड़ा था। उसकी छत फूलों से लदी मालती आदि लताओं के चित्रों से अंकित थी। उसके दरवाजों पर स्वर्ण निर्मित, चन्दन-चर्चित मंगल-कलश बड़े ही सुन्दर रूप में स्थापित थे। दरवाजों पर मणियों एवं मोतियों की मालाएं लटकती थीं। अनेक सुगन्धित पदार्थों से बने धूप को जलाने से निकलती सुगन्ध से वह भवन महकता था। स्थानस्थान पर जड़ी.हुई मणियों की ज्योति से वह जगमगाता था। सुन्दरता में वह देव-विमान को भी मात करता था।
ऐसे उत्तम भवन में महारानी निवास करती थी। शय्या बिछी थी। उस पर देह प्रमाण गद्दा लगा था। दोनों ओर मस्तक तथा पैरों के स्थान पर-ऊपर एवं नीचे तकिये लगे थे। वह शय्या दोनों तरफ से ऊंची थी, बीच में गंभीर-गहरी या नीची थी। जैसे गंगा के तट की बालू पर पैर रखते ही उसकी कोमलता के कारण वह उसमें धंस जाता है, वह शय्या उसी प्रकार कोमल थी। सुन्दर रूप में सज्जित-कसीदा कढ़ी हुई, अति बारीक धागों से बनी चद्दर उस पर बिछी थी। मिट्टी, खेह आदि से बचाने हेतु उसके लिए एक सघन आस्तरण बना हुआ था। जब वह उपयोग में नहीं ली जाती, तब बिछौना उससे ढका रहता था।
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