Book Title: Dashvaikalika Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अध्ययन ४ सू. ६ त्रसकायवर्णनम्
२२१ जेसि केसिंचिं पाणाणं अभिकंतं पडिकंतं संकुचियं पसारियं रुयं भंत तसियं पलाइयं, आगइगइविन्नाया।जे य कीडपयंगा। जा य कुंथुपिवीलिया । सवे वेइंदिया, सवे तेइंदिया, सवे चउरिंदिया, सवे पंचिंदिया, सवे तिरिक्खजोणिया, सर्वे नेरइया, सवे मणुया, सवे देवा, सवे पाणा परमाहम्मिया । एसो खल्ल छहो जीवनिकाओ तसकाउ-त्ति पवुच्चइ ॥६॥
छाया-अथ ये पुनरिमेऽनेके वहवस्त्रसाः प्राणिनस्तयथा-अण्डजाः पोतना जरायुजा रसनाः संस्वेदजाः सम्मृच्छिमा उद्भिजा औपपातिकाः, येपां केपाञ्चित्माणिनामभिक्रान्तं प्रतिक्रान्तं संकुचितं प्रसारितं रुतं भ्रान्तं त्रस्तं पलायितम् , आगतिगतिविज्ञातारः। ये च कीटपतङ्गाः । याश्च कुन्युपिपीलिकाः। सर्वे द्वीन्द्रियाः, सर्व त्रीन्द्रियाः, सर्वे चतुरिन्द्रियाः, सर्वे पञ्चेन्द्रियाः, सर्वे तिर्यग्योनिकाः, सर्वे नैरयिकाः, सर्वे मनुजाः, सर्वे देवाः. सर्वे प्राणाः परमधर्माणः । एप खलु पष्ठो जीवनिकायस्वसकाय इति पोच्यते ॥६॥
(६) सकायवर्णन. ___ सान्वयार्थ:--से=अध पुण और जे-जो इमेन्ये (आगे कहे जानेवाले) अणेगे अनेक प्रकारके यहवे बहुतसे तसा त्रस पाणा-पाणी हैं, तंजहावे इस प्रकार हैं-(१) अंडया अण्डे से उत्पन्न होनेवाले, (२) पोयया विना जेर (जरायु-आंवल-जड)के अर्थात् विना ही कुछ मलभागके वस्त्रसे पूंछे हुएके समान उत्पन्न होनेवाले, (३) जराउया-जेरसे लिपटे हुए उत्पन्न होनेवाले,(४)रसया रसमें उत्पन्न होनेवाले, (५) संसेइमा पसीनेसे उत्पन्न होनेवाले, (६) संमु. च्छिमामूच्छिम, (७) उम्भिया पृथ्वीको भेदकर उत्पन्न होनेवाले (शलभ आदि), (८) उववाइया-उपपात जन्मबाले-देव और नारकी, जेसिं-केसिंचि= इनमें से जिन किन्हीं पाणाणं आणियोंका अभिकतं अभिमुख गमन होता है, पडिकंत प्रतिकूल गमन होता है, संकुचियं शरीरमें संकोच-सिकुडन होता है, पसारियं-शरीरमें फैलाव होता है, रुयं-शब्दका प्रयोग होता है, भंत=इधर-उधर भ्रमण होता है, तसियं-उद्वेग होता है, पलाइयंडरसे भागना-देखा जाता है, (वे त्रस) आगइगइविन्नाया आगमन और गमनको जाननेवाले, य=और जेमो