Book Title: Dashvaikalika Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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श्रीदनकालिने वोसिरामि । पढमे भंते ! महत्वए उबहिओमि सवाओ पाणाड़वायाओ वेरमणं ॥८॥ . छाया-प्रथमे भदन्त ! महायते मागातिपाताविरमणं, सर्व भदन्त ! पाणातिपातं प्रत्याख्यामि, अब सक्ष्म या पादरं गा प्रसं या स्थावरं वा नेत्र स्वयं प्राणा: नतिपातयामि, नवान्यः माणानतिपातयामि, माणानतिपातयतोऽप्यन्यान समनुः जानामि यावनीवया विविध-निविधेन मनसा वाचा कायेन न करोमि न कारयामि कुर्वन्तमप्यन्यं न समनुजानामि, तस्माद भदन्त ! प्रतिक्रामामि निन्दाम गर्दै आत्मानं व्युत्मजामि, मयमे भदन्त ! महावते उपस्थितोऽस्मि सर्वस्माद प्राणाविपाताद्विरमणम् ॥ . ' शिष्य पट्कायकी विराधना का त्याग करके अब पाँच महावत मोर छठे रात्रि भोजनविरमणबतको ग्रहण करता है
(१) प्राणातिपातविरमण.. . सान्वयार्थः-भंते ! हे भदन्त !-हे भगवन् ! पढमेअथम महब्धए-महानतम पाणाइवायाओ-माणातिपातसे वेरमणं-विरमण होता है, (अंतः म) भंते । भगवन् ! सव्वं सब प्रकारके पाणाइवाय पाणातिपात (हिंसा) का पच क्खामिन्स्याग करता है। से अथ-अवसे लेकर (में) सुहम मूक्ष्म वा अथवा बायरंचादर वा अथवा तसंत्रस वा अथवा धावरं स्थावर पाणे माणियांका सयं-स्वयं-खुद नेव-नहीं अइवाइजा-अतिपात-हनन-करूँगा, नेवन अन्नेहिं दूसरोंसे पाणे माणियोंको अइयायाविना हनन कराऊँगा, (आर) पाणे माणियोंको अइवायंतेवि हनन करते हुए भी अन्ने दूसरोंको ननहार समणुजाणेजा-भला जानूंगा, जावज्जीवाए जीवनपर्यन्त (इसको) तिवहन कृतकारितअनुमोदनारूप तीन करणसे (तथा) तिविहेणं-तीन प्रकारक मणेणं-मनसे चायाए-बचनसे कारणं कायसे न करेमिन करूँगा, न कारवेमिन कराऊँगा, करतंपिकरते हुए भी अन्नं दुसरेको न समणुजाणामि-भला नहीं समझेंगा। भंते ! हे भगवन् ! तस्स-उस दण्डस पडिकमामि-पृथक् होता हूँ, निंदामिआत्मसाक्षीसे निन्दा करता है। गरिहामि-गुरुसाक्षीसे गर्दा करता हूँ, अप्पाणंदण्ड सेवन करनेवाले आत्माको बोसिरामि त्यागता हूँ। भंते हे भगवन् ! पढमे पथम महत्वएमहावतमें मैं उवडिओमि-उपस्थित हुआ हूँ, इसलिये मुझे सव्वाओ-सब प्रकारके पाणाइवायाओमाणातिपातका वैरमणंयाग है ॥८॥ (१)