Book Title: Dashvaikalika Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अध्ययन ४ गा० १५ - चन्धस्वरूपम्
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पमा, कस्यचिञ्चान्तर्मुहूर्त्त परिच्छिन्ना, एवं विभिन्नकर्मणां नियतकालावस्थानं स्थितिबन्धः (२) ।
यथा कस्यचिन्मोदकस्यानुभागो (रसो) ऽतिमधुरः स्वल्पमधुरो वा, कस्यचिदतिकटुकः स्वल्पकटुको वा, कस्यचिच्च नातिमधुरो नाप्यतिकटुको भवति, द्विगुणीकरणादिना च स एव मन्द मन्दतरत्वादिव्यपदेशं च लभते तथा कर्मणामपि "शुभाशुभादिरूपेण तीव्र - तीव्रतर - तीव्रतम मन्द मन्दतर- मन्दतमत्वादिभेदभिन्नो वन्धोऽनुभागबन्धो रसबन्धव्यपदेश्यः (३) ।
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१ शुभकर्मणामनुभागो (रसो) द्राक्षेक्षुक्षीरमाक्षीकवदतिमधुरो भवति, यदनुभकिसीकी सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरोपमकी होती है, किसी कर्मकी अन्तमुहूर्त्त मात्र की होती है, इस प्रकार विभिन्न कर्मोंका अमुक समय तक आत्मा के साथ स्थित रहना स्थितिबन्ध कहलाता है ।
(३) जैसे किसी मोदकका स्वाद (रस) बहुत मीठा होता है, किसी मोदकका कम मीठा होता है, किसीका स्वाद बहुत कडुआ होता है, किसीका कम कडुआ होता है, किसीका स्वाद न अधिक मीठा होता है, न अधिक कडुआ होता है, उसे ही द्विगुण आदि करदेने से वही मन्द मन्दतर आदि कहलाने लगता है । वैसे ही कर्मोंका रस शुभ अशुभ रूपसे तीव्र, तीव्रतर, तीव्रतम, मन्द, मन्दतर और मन्दतम आदि भेदों से विविध प्रकारका होता है । उसे ही अनुभागबन्ध या रसबन्ध कहते हैं।
१ शुभकर्मीका अनुभाग (रस) दाख, सांठा (गन्ना), दूध या मधुके समान હાય છે, કાઇ કર્મની સ્થિતિ માત્ર અંતર્મુહૂર્તની હાય છે. એ પ્રકારે વિભિન્ન કર્મીનું અમુક સમય સુધી આત્માની સાથે સ્થિત રહેવું એ સ્થિતિ ધ કહેવાય છે, (3) भो भनी स्वाह ( रस ) गहु भीठो होय छे !! भोहन આ મીઠા હાય છે, કોઇ મેાદકના સ્વાદ અહુ કડવે હાય છે, કોઈને ઓછે કડવા હોય છે, કોઈને સ્વાદ ન વધુ મીંઠો કે વધુ કડવા હોય છે, તેને દ્વિગુણુ (બેવડા ) કરવાથી તે મંદમ ંદતર આદિ કહેવાવા લાગે છે, એજ રીતે કર્મોના रस शुभ अशुभ ३५थी तीव्र, तीव्रतर, तीव्रतम, मह, महतर, महतभ महि ભેદેએ કરીને વિવિધ પ્રકારના થાય છે. એને જ અનુભાગમધ ચા રસમધ उडे छे.
૧ શુભ કર્મોના અનુભાગ (રસ) દ્રાક્ષ, રોરડી, દૂધ ચા મધના જેનેા અંતિમધુર હોય છે.