Book Title: Dashvaikalika Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 683
________________ - अध्ययन ५ उं. २ गा. ३१-३२-भिक्षाऽपनवनिषेधः, तदोपाच ५२५ कोपावेशेन मनो विकृतं न विध्यात् । वन्दितः सार्वभौमादिनाऽपि नमस्कृतश्च न समुत्कर्पयेत् आत्मानमिति शेपः, 'अहमेतादृशो माननीयो जगति, यदेवंविधा नरेन्द्रादयोऽपि मम चरणी प्रणमन्ती'-त्याधभिमानं न कुर्यादित्यर्थः। एवम् उक्तप्रकारेण अन्वेपमाणस्य-जिनशासनमनुतिष्टतः साधोः श्रामण्यं साधुत्वं चारित्रमिति यावत् अनुतिष्ठति=स्थिरीभवति, मानापमानसमानमानसस्यैव साधोनिरविचारचारित्रं सम्पद्यत इति भावः ।। ३० ॥ स्वपक्षे चौर्य निषेधयति-सिया' इत्यादि ।। मूलम्-सिया एगइओ लद्धं, लोभेण विणिगृहइ । मामेयं दाइयं संतं, दट्टणं सयमायए ॥३१॥ छाया स्यात् एककः लन्ध्या, लोभेन विनिगृहते । ___ ममेदं दर्शितं सद्, दृष्ट्वा स्वयमाददीत ॥ ३१ ।। अब स्वपक्ष-साधुपक्ष में चोरी का निषेध बताते ह. सान्वयार्थ:-सिया-कदाचित-अगर एगइओ-जघन्यप्रकृतिवाला अकेला गोचरी गया हुआ साधु लद्धं-सरस अशनादि पाकर लोभेण-खानेके लोभसे (उसे) विणिगृहइ-छिपा लेवे-नीरस वस्तुको ऊपर रखकर सरस वस्तुको उसके नांचे दया रखे, क्योंकि मम-मेरी दाइयं संतं दिखलाई हुई एयं इस वस्तुको दणं-सरस देखकर सयं स्वयं आचार्य आदि खुद आयए-लेलंगे अर्थात् मुझे नहीं देंगे या थोड़ी देंगे ॥३१॥ अनादर करता है, तथा चक्रवती आदि राजा-महाराजा भी वन्दना करें तो आत्मप्रशंसा (घमंड) न करे कि-'मैं संसारमें ऐसा माननीय है कि ऐसे राजा महाराजा भी मेरे चरणोंमें गिरते हैं। इस प्रकार जिन-शासनमें स्थित साधुका चारित्र स्थिर (दृढ) रहता है, अर्थात् सत्कार और तिरस्कार होने पर अन्तःकरणमें विकार न करनेवाले अनगारका आचार निरतिचार पलता है ॥ ३०॥ स्वपक्षमें चौर्यका निषेध करते हैं-'सिया' इत्यादि । તથા ચક્રવતી આદિ રાજા-મહારાજા પણ વંદના કરે તે આત્મપ્રશંસા (ઘમંડ) ન કરે કે હું જગતમાં એ માનનીય છું કે એવા રાજા મહારાજા પણ મારા ચરણમાં પડે છે.” એ રીતે જિનશાસનમાં સ્થિત એવા સાધુને ચારિત્ર સ્થિર (દઢ ) રહે છે, અર્થાત્ સત્કાર અને તિરસ્કાર થતાં પણ અંત:કરણમાં વિકાર ન કરનારા અનગારને આચાર નિરતચાર પણે પલે છે. (૩૦) २१५क्षमा योयना निषेध ४३ -सिया त्या.

Loading...

Page Navigation
1 ... 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725