Book Title: Dashvaikalika Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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२०१५
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अध्ययन ५ उ.१ गा. ७०-७२-आहारग्रहणविवेकः
टीका-'कंद' इत्यादि । कन्द, मूलम् , इमे माग्व्याख्याते, वा अथवा 'मलम्बस्तालादिफलम् आमम् अपक्वं-सचित्तमित्यर्थः । चन्पुनः छिन्नंकलितमपि सन्निरं-पत्रशाकं वास्तूकादिकं, तुम्बकम्=अलावूविशेष, शृङ्गवेरम् आर्द्रकं चकारादन्यदपि प्रत्येकसाधारणवनस्पतिमात्रम् आमकम् अपक्वं सचित्तं परिवर्जयेत्-त्यजेत्-न गृह्णीयादित्यर्थः ॥७०॥ मूलम् तहेव सत्तुचुन्नाई कोल-चुन्नाई आवणे ।
सक्कुलिं फाणियं पूअं, अन्नं वावि तहाविहं ॥७१॥ विकायमाणं पसढं, रएणं परिफासियं । दितियं पडियाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥७२॥ छाया-तथैव सक्तु-चूर्णानि, कोल-चूर्णानि आपणे।
शप्कुली फाणितं, पूपमन्यद्वापि तथाविधम् ॥७१॥ विक्रीयमाणं मसह्य, रजसा परिस्पृष्टम् ।।
ददतीं प्रत्याचक्षीत, न मे कल्पते तादृशम् ॥७२॥ सान्वयार्थः-तहेव-जिसमकार सचित्त कन्दादि अग्राह्य हैं उसीप्रकार सत्तुचुन्नाईन्भुने हुए जौ या चनेका आटा-सत्तू कोलचुन्नाइंधेरोंका चूरा सक्कुलिंतिलपापड़ी फाणियं गीला गुड़ पूर्य-मालपूना (तथा) तहाविहं-उसीपकारके
अन्नं वावि औरभी पदार्थ जो आवणे-दुकानपर विकायमाणं बेचने के लिए रखे हुए हैं वे (यदि) पसदं वस्त्रसे आच्छादित होनेपर भी रएणं सचित्त सूक्ष्म रजसे परिफासियं व्याप्त हों तो दितियं देनेवाली से पडियाइक्खेकहे कि
'कंद' इत्यादि । सचित्त कन्द, मूल, ताड-फल आदि तथा कटा हुआ भी सचित्त पत्तोंका शाक-बथुआ आदि, और सचित्त तुम्बा तथा अदरख भी साधु ग्रहण न करे । 'च' शब्दसे यह भी समझना चाहिये कि इनके सिवाय कोई भी सचित्त-प्रत्येक या साधारण वनस्पति, साधुको नहीं कल्पती है ॥ ७० ॥
__ कंदं त्या सयित्त है, भू, dism माह तथा अपेक्षा छापा छतi સચિત્ત પાંદડાંનું શાક-બથુઆની ભાજી આદિ અને સચિત્ત દૂધી આદિ તથા આદુ પણ સાધુ ગ્રહણ ન કરે. ૨ શબ્દથી એમ પણ સમજવું કે તે ઉપરાંત કેઈ પણ સચિત્ત-પ્રત્યેક યા સાધારણ વનસ્પતિ સાધુને ક૫તી નથી. (૭૦)