Book Title: Dashvaikalika Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भीमकालियो
किया है वह और पीछे लगे हर किया हो तो तस्सा रहा है
मूलम् न सम्ममालोइयं हुजा, पुचि पच्छा व जं कडं।
पुणो पडिकमे तस्स बोसहो चिंतए इमं ॥९१ ॥ छायान सम्पगालोचितं भवेद, पूर्व पाहा यकृतम् ।
पुनः मतिकामेत्तस्य, व्युत्पप्रणिन्तयेदिदम् ॥९॥ सान्वयार्थ:-जै-जो अविवार पुब्धि-पहले वन्तया पच्छा-पीछे कई किया है वह सम्मं सम्यक प्रकारसे अच्छी तरह याने 'पहले लगे हुए पापको पहले आलोवे और पीछे लगे हुए पापको पीछे आलोवे' इस प्रकार आलो. इयंभालोचित न फुज्जा नहीं किया हो तो तस्स-उस अविचारको पुणोफिरसे पडियमे आलोवे, (और) चोसहोल्कायोत्सर्गमें रहा हुआ साधु इमइस आगे कहा जानेवाला' मकार चिंतए-चिन्तन करे ॥१॥
टीका---'न सम्मः' इत्यादि । यत् व्यस्मादेतोः पूर्व पत्राद्वा कृतविचार सम्यक-मापत मागालोचितव्यं पवात्कृतं च पश्चादालोचितव्यमिति क्रमेण आला चितकार्शितं न भवेदतः तस्य अविचारस्य (सम्बन्धसामान्ये पष्ठी) पुनः प्रतिक्रामेत् । व्युत्स्ट कायोत्सर्गस्थः इदं वक्ष्यमाणं चिन्तयेत् ।।९१॥
तदेवाऽऽह-'अहो' इत्यादि। मूलम्-अहो जिणेहिं असावजा, वित्ती साहूण देसिया ।
मोक्खसाहणहेउस्स, साहुदेहस्स धारणा ॥ ९२॥ " 'न सम्म' इत्यादि। आगे-पीछे किये हुए अतिचारोंकी सम्यक प्रकार अर्थात् पहले किये हुए अतिचारोंकी पहले और पश्चात् किय हुएकी पश्चात-आलोचना न की गई हो तो अतिचारोंका पुनः प्रतिक्रमण करना चाहिए और कायोत्सर्गमें स्थित होकर ऐसा ( अगली गाधाम कहे जानेवाला) विचार करे॥९॥
उसी विचारको कहते हैं-'अहो' इत्यादि ।
જ ર૦ ઇત્યાદિ. આગળ પાછળ કરેલા અતિચારની સમ્યક પ્રકારે અર્થાત પહેલાં કરેલા અતિચારની પહેલાં અને પાછળ કરેલા અતિચારની પાછળ આલોચના ન કરવામાં આવી હોય તે અતિચારોને પુન:પ્રતિક્રમણ કરવું જોઈએ અને કાસગમાં સ્થિત થઈને એવા (આગલી ગાથામાં કહેવામાં આવનાર છે. વિચાર કરે (૯૧).
विवार ३ ४ छे-अहो. त्याहि.