Book Title: Dashvaikalika Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
अध्ययन ५ उ. २ गा. ५-६-समयमर्यादया गोचरीगमनोपदेशः पडिलेहिसी नहीं देखते, अतः अप्पाणं आत्माको किलामेसि-किलामनाखेद-पहुंचाते हो च-और संनिवेसंगामकी गरिहसि-निन्दा करते हो । तात्पर्य यह हुआ कि गोचरीका समय हुए विना घूमनेसे साधु भगवानकी आज्ञाका विराधक होता है, और दीनता मगट करनेके कारण उसके चारित्रमें मलिनता होती है; अतः जिस देशमें जो भिक्षाका समय हो उसी समयमें साधुको मिक्षाके लिए जाना चाहिये ॥५॥ ___टीका-हे भिक्षो ! त्वम् अझाले असमये चरसि-भिक्षार्थ गच्छसि किन्तु कालं-भिक्षोचितसमयं न प्रत्युपेक्षसेन्नाद्रियसे, तेन च हेतुनाऽऽत्मानं लमयसि पीडयसि मिक्षालाभाभावेन भ्रमणाधिक्येन चेति भावः । संनिवेशं ग्रामं च पुनः गईसे-निन्दसि । भगवदाज्ञाविराधकत्वेन दैन्यप्रकाशनेन च चारित्रमालिन्यं जायते, ततोऽनुचितकाले भिक्षार्थ न गन्तव्यमिति ॥ ५ ॥ मूलम्-सइ काले चरे भिक्खू , कुजा पुरिसकारियं ।
अलाभु-त्ति न सोइजा, तनु-त्ति अहियासए ॥६॥ छाया-सति काले चरेद् भिक्षुः, कुर्यात्पुरुपकारम् ।
अलाभ इति न शोचेन, तप इति अधिपहेत ॥ ६॥ सान्वयार्थ:-भिक्खू साधुको काले भिक्षाका समय सइन्होनेपर चरेगोचरीके लिए घूमना चाहिए और पुरिसकारियं उत्साह पूर्वक घूमनेरूप
हे भिक्षु ! आप असमयमें भिक्षाके लिए जाते हैं, समयका खयाल नहीं रखते। इसी कारण अधिक भ्रमण करनेसे या भिक्षाके न मिलनेसे तुम अपनी आत्माको पीडित करते हो, और ग्राम-नगरकी निन्दा करते हो। अकालमें भिक्षाके लिये गमनरूप भगवानकी आज्ञाकी विराधना करनेसे तथा दीनताप्रगट करनेसे चारित्रमें मलिनता आती है इसलिए अनुचित समयमें भिक्षाके लिए नहीं जाना चाहिए ॥५॥
હે ભિક્ષા આપ અસમયમાં ભિક્ષા માટે જાઓ છે, સમયને ખ્યાલ રાખતા નથી. એ કારણે વધારે કરવાથી યા ભિક્ષા ન મળવાથી તમે તમારા આત્માને પીડિત કરે છે અને ગ્રામ-નગરની નિંદા કરે છે. અકાળે ભિક્ષાને માટે જવારૂપી ભગવાનની આજ્ઞાની વિરાધના કરવાથી તથા દીનતા પ્રકટ કરવાથી ચારિત્રમાં મલિનતા આવે છે, તેથી અનુચિત સમયે ભિક્ષા માટે જવું ન ले . (५)