Book Title: Dashvaikalika Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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श्रीदशवकालिकलने उजोयगरे"इत्यादिलक्षणं सम्पूर्ण कला-विधाय स्वाध्याय-"धम्मो मंगलमुकि" इत्यादिगाधापसमादन्यून मूलगानं परिला सणसणमा 'मन्डलेऽन्यमुनयोऽपि समागत्य समिलिता भवन्तु' इत्याशयेन विधाम्पत्-विश्रान्ति कुर्यात् १९३।।
विश्राम्यन् मुनिः किं कुर्यात् ? इत्याह--- मूलम्-वीसमंतो इमं चिंते, हियम लाभमहिओ ।
जइ मे अणुग्गहं कुज्जा, साह हुज्जामि तारिओ ॥९॥ छाया-विश्राम्यन् (मुनिः) इदं चिन्तयेत्, हितमर्थ लामायिकः ।
यदि मम अनुग्रहं कुर्यात, साधुभवामि तारितः ॥१४॥ विश्रामके समय मुनि क्या फरे ? सो बताते हैं
सान्वयार्थ:-चीसमतो-विश्राम करता हुआ लाभमहिओ-कर्मनिर्जराका अभिलापी साधु इम-इस-इसी गायाके उत्तरार्द्धमें कहेजानेवाले प्रकार हियमोक्षप्राप्तिरूप हितके करनेवाले अटे भावी प्रयोजनको चिते-चिन्तन करे, जैसे जह-यदि-अगर साहकोईभी मुनिराजमे मेरे ऊपर अणुग्गहं कुज्जा अनुग्रह करें अर्थात्-मेरे भागके आहारमें से कुछ आहार लेलें तो मैं तारिओ हुज्जाइस संसार-समुद्रको तैर जाऊं-पार कर जाऊं ।।९४॥
टीका-विश्राम्यन् विश्रान्ति कुर्वाणो लाभार्थिका कर्मनिर्जराभिलापी इदंगाथोत्तरार्दे वक्ष्यमाणं हित मुक्त्यवाप्तिरूपम् अर्थ-भाविपयोजनं चिन्तयेत्-विचारयेत, यदि कोऽपि साधु-मुनिः मम मदुपरि अनुग्रह-मया मदथै वोपनीतस्यानादेहणलक्षणं कुर्यात् तर्हि अहं तारितः-दुस्तरभवसागरतः समुत्तारितो भवा. मीत्यर्थः ॥१४॥ जिन संस्तव पूर्ण करके 'धम्मो मंगलमुकिह' इत्यादि कमसे कम पांच गाथाओंकी मूल-शास्त्रकी सज्झाय करके थोड़ी देर विश्राम करे कि जिससे अन्य मुनि भी आकर शामिल हो जावें ॥१३॥
विश्राम करता हुआ मुनि क्या करे सो कहते हैं-'बीसमंतो' इत्यादि। धम्मो मंगलमुफिट त्या मामा माछी पांच यानी भूशानी समय કરી ડીવાર વિશ્રામ કરે કે જેથી અન્ય મુનિ પણ આવીને શામિલ થઈ જાય (૯૩)
विधान त भुनि शुधरे ते ७ वीसमंतो.त्याह,