Book Title: Dashvaikalika Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अध्ययन ५ उ.१ गा. ७०-७२-आहारग्रहणविवेकः
४६३ टीका-'कंदं' इत्यादि । कन्द, मूलम्, इमे माग्व्याख्याते, वा अथवा मलम्ब-तालादिफलम् आमम् अपक्वं-सचित्तमित्यर्थः । च-पुनः छिन्नंकलितमपि सन्निरं-पत्रशाकं वास्तूकादिकं, तुम्बकम् अलाबूविशेष, शृङ्गबेरम्-आर्द्रकं चकारादन्यदपि प्रत्येकसाधारणवनस्पतिमात्रम् आमकम् अपक्वं सचित्तं परिवर्जयेत्त्य जेत्-न गृह्णीयादित्यर्थः ॥७०॥ मूलम् तहेव सत्तुचुन्नाई कोल-चुन्नाई आवणे ।
सक्कुलिं फाणियं पूअ, अन्नं वावि तहाविहं ॥७१॥ विकायमाणं पसढं, रएणं परिफासियं ।
- ૧૭ ૨૦ ૧૬ ૨૧ ૧૬ दितियं पडियाइक्वे, न मे कप्पइ तारिसं ॥७२॥ : छाया-तथैव सक्तु-चूर्णानि, कोल-चूर्णानि आपणे।
शप्कुली फाणितं, पूपमन्यद्वापि तथाविधम् ॥७१॥ विक्रीयमाणं प्रसह्य, रजसा परिस्पृष्टम् ।।
ददतीं प्रत्याचक्षीत, न मे कल्पते तादृशम् ॥७२॥ सान्वयार्थः-तहेव-जिसप्रकार सचित्त कन्दादि अग्राह्य हैं उसीप्रकार सत्तु. चुन्नाई-भुने हुए जौ या चनेकाआटा-सत्तू कोलचुन्नाई-बेरोंका चूरा सक्कुलि= तिलपापड़ी फाणियंगीला गुड़ पूयं मालपूवा (तथा) तहाविहं-उसीप्रकारके
अन्नं वावि औरभी पदार्थ जो आवणे-दुकान पर विकायमाणं बेचने के लिए रखे हुए हैं वे (यदि) पसदंबस्त्रसे आच्छादित होनेपर भी रएणं सचित्त मूक्ष्म रजसे परिफासियं व्याप्त हों तो दितियं देनेवालीसे पडियाइक्खे-कहे कि
__ 'कंदं ' इत्यादि । सचित्त कन्द, मूल, ताड-फल आदि तथा कटा हुआ भी सचित्त पत्तोंका शाक-बथुआ आदि, और सचित्त तुम्बा तथा अदरख भी साधु ग्रहण न करे । 'च' शब्दसे यह भी समझना चाहिये कि इनके सिवाय कोई भी सचित्त-प्रत्येक या साधारण वनस्पति, साधुको नहीं कल्पती है ॥ ७० ॥
कंद. त्याहसचित्त , भूग, तm माह तथा पिसा डापा छतi સચિત્ત પાંદડાંનું શાક-બથુઆની ભાજી આદિ અને સચિત્ત દૂધી આદિ તથા આદુ પણ સાધુ શહગ ન કરે. ૨ શબ્દથી એમ પણ સમજવું કે તે ઉપરાંત કૈઈ પણ સચિત્ત-પ્રત્યેક યા સાધારણ વનસ્પતિ સાધુને કલ્પતી નથી. (૭૦).