Book Title: Dashvaikalika Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अध्ययन ५ उ. १ गा. १९-गोवा मलमूत्रव्युत्सर्जनविधिः स्च्यादीनामप्रतीतिकारणत्वान, तादृशव्यवहारानौचित्याच, तस्मादावश्यकतायां तत्स्वामिनं पृष्ट्वैवोद्धाटयेदिति भावः ॥१८॥ मूलम्-गोयरग्गपविट्ठो य, वच्च-मुत्तं न धारए।
ओगास फासुअं नञ्चा, अणुन्नविअ वोसिरे ॥१९॥ छाया-गोचराग्रमवष्टिश्च, वर्गों-मूत्रं न धारयेत् । ___अवकाशं प्रासकं ज्ञावा, अनुज्ञाप्य व्युत्सजेत् ॥१९॥ सान्वयार्थः-गोयरग्गपविहो-गोचरीमें गयाहुआ मुनि बच्च-मुत्तं मल और मूत्रको नधारए-नहीं रोके अर्थात् मल-मूत्र-की बाधा उपस्थित होनेपर उनके वेगका अबरोध न करे, (किन्तु) फासुयंपाशुक-जीवरहित ओगासं-स्थण्डिलभूमिका नचा-जानकर अणुनविय-गृहस्थकी आज्ञा लेकर चोसिरे मल-मूत्रका त्याग करे ॥१९॥
टीका-गोयरग्ग०' इत्यादि । पूर्व निवृत्तवाधोऽपि गौचराग्रमविष्टो मुनिः पुनस्तद्वाघायामुपस्थितायां वर्ची-मूत्र मलं प्रस्रावं च न-धारयेत्नावरुन्ध्यात् । यत उक्तम्---
" जो मुत्तनिरोहे चक्खूबधाओ भवति, पचनिरोहे जीविओवधाओ करती हुई स्त्री आदिको अप्रतीतिका कारण है, तथा लोकव्यवहारसे भी अनुचित है, अतः आवश्यकता होने पर उसके स्वामीको पूछ करके ही किवाड़ परदा आदि खोलना चाहिए ॥१८॥
'गोयरग्ग०' इत्यादि । गोचरी जानेके पहले लघुनीत और बड़ीनीतकी शंकाको निवृत्त करलेने पर भी यदि गोचरीके लिए चले जाने पर पुनःलघुशंका आदि की शंका होजाय तोमल-मूत्र को रोके नहीं, क्योंकि कहा है
"मृत्रके निरोध करने से नेत्रोंको हानि होती है और मलका અપ્રતીતિનું કારણ બને છે, તથા લેકવ્યવહારથી પણ અનુચિત છે. તેથી જરૂર પડતાં તેના સ્વામીને પૂછી લઈને જ કમાડ વડદે આદિ ખોલવાં જોઇએ. (૧૮)
गोयरग्ग. त्याहि यशो ४५ पडi aनात मने पहनातनी શંકાને નિવૃત્ત કરવા છતાં પણ જે ગોચરી માટે નીકળી ગયા પછી ફરી લધુશંકા આદિની શંકા થઈ જાય તે મળ-મૂત્રને રોકવાં નહિં, કારણ કે કહ્યું છે કે
મૂત્રને નિરોધ કરવાથી નેત્રને હાની થાય છે અને મળને નિષેધ કરવાથી