Book Title: Dashvaikalika Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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श्रीकालिकसूत्रे
सरका कर ओसिफिया=अधिक इन्धनको चूल्हेके भन्दरसे बाहर निकालकर उज्जालिया मुझी हुई भूमि को फूंक आदि उरीपित सलगा कर पज्जालिया= जलती हुई अमिको अधिक मदीस कर निव्याविया = अमिको पानी आदिसे घुझाकर उस्सि चिया=भमिपर पकते हुए अन्नादिको कुछ बाहर निकाल कर निस्सिचिया उमरते हुए दुग्धादिमें जल छिड़ककर ओवरिया = अप्रिपर रहे हुए अन्नादिको दूसरे परतनमें निकालकर ओयारिया=अप्रिपर रहे हुए अना दिके पतनको नीचे उतारकर अर्थात् अनिकायका परम्परासे संघट्टा करके दग= अशनादि देवे तो तंत्र भत्तपाणं तु भवनादि संजयाणं = साधुओं के लिए अकप्पियं =अकल्पनीय भवे है, (अतः) दितियं देती हुईसे साधु पडियाइक्खे = कहे कि तारिसं=इस प्रकारका आहारादि मे = मुझे (लेना) न कप्पड़नहीं पता है ||६३ ॥६४॥
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टीका- 'एचं०' इत्यादि, 'तं भवे०' इत्यादि च । एवम् उक्तप्रकारेण तेजस्कायविपय इवेति भावः, उत्क्षिप्य = 'यावत्कालं साधवेन्नादिकं ददामि तावत्कालमर्मा प्रशाम्यतु' इति बुद्धया चुल्लयादाविन्धनमुत्सार्य, अत्रक्षिप्य = दाइभयादिन्धनं निःसार्य, उज्ज्वाल्य अनुज्ज्वलितं फूत्कारादिनोद्दीप्य, प्रज्वाल्य-उद्दीप्तं, प्रकर्षेण संवर्ध्य, निर्वाप्य=प्रशान्तीकृत्य, उत्सिच्य= अग्न्युपरिस्थितमन्नादिकं किञ्चिअहिष्कृत्य, निपिच्य= उद्वलदुग्धादिकं जलेन प्रशाम्य, अपवर्त्य भाजनान्तरे ' एवं उस्सिक्किया० ' इत्यादि, तथा 'तं भवे' इत्यादि ।
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जब तक आहार देती हूं तब तक, अग्नि न वुझ जाय ' ऐसा विचार कर चूल्हे में इंधन सुलगाकर, अन्न आदि जलनेके भयसे इंधन बाहर निकाल कर, फूँक आदिसे चूल्हा जला कर, जलती अग्निको तेज कर या बुझाकर, अग्नि पर पकते हुए आहारको कुछ एक ओर कर, तथा पानी डाल कर उबाल (उफान ) को शान्त कर, अथवा अन्न आदि सहित
एवं उस्सि किया० त्याहि, तथा तं भवे० धत्याहि.
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· જ્યાં સુધી આહાર આપતી હાઉં, ત્યાં સુધી અગ્નિ હાલવાઇ ન જાય, એવા વિચાર કરીને ચૂલામાં ઈંધણાં સળગાવીને, અન્નાદિ ખળી જવાના ભયથી ઈંધણાં બહાર કાઢીને, કૈંક આદિથી ચૂલો સળગાવીને, બળતા અગ્નિને તેજ કરીને ચા ખુઝાવીને, અગ્નિ પર પાકતા આહારને કાઈ એક બાનુએ કરીને તથા પાણી નાંખીને ઊભરાને શાંત કરીને, અથવા અન્નદિ સહિત ત્રાસણને ' નીચે