Book Title: Dashvaikalika Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अध्ययन ५ उ. १ गा. १२-मार्गगमनयतना
३९१ लक्षणं विज्ञाय-अवबुध्य एकान्तम्-एका अद्वितीयः अन्तो-निश्चयो व्रतरक्षणविषयको मोक्षप्राप्तिविपयको वा एकान्तस्तम् आश्रित:-आस्थितो मुनिः वेशसामन्तं वेश्यापाटकगमनं वर्जयेत् परित्यजेत् । ___ 'वियाणित्ता' इत्यनेन सम्यगवयोधमन्तरेण दोपपरित्यागो याथातथ्येन न संभवतीति, 'एगंतमस्सिए' इत्यनेन च मुनिना सततं मोक्षकलक्ष्येण भवितव्यमिति सूचितम् ॥११॥ मार्गयतनामेव विशिष्याऽऽह-'साणं' इत्यादि । मूलम्-साणं सूइयं गाविं, दित्तं गोणं हयं गयं ।
" ० ॥ १२ संडिब्भं कलह जुद्धं, दरओ परिवजए ॥१२॥ छाया-श्वानं मूतां गां, दृप्तं गोणं हयं गजम् ।
संडिम्भं कलहं युद्ध, दूरतः परिवर्जयेत् ॥१२॥ साधु जहाँ भिक्षा के लिये न जावे उन स्थानों को विशेप रूपसे कहते हैं
सान्वयार्थ:-साणं-जहां काटनेवाला कुत्ता हो सूइयथोडे कालकी व्याई हुई गावि-गाय हो दित्तं मदमस्त गोणं-गोधा साण्ड अथवा बैल (और) हयंघोड़ा (अथवा) गयं-हाथी हो (तथा) संडिभ-जहां बच्चे खेल रहे हों कलहंपरस्पर वाग्युद्ध-गाली-गलोच-हो रहा हो जुद्ध शस्त्र आदिसे युद्ध होता हो (ऐसे स्थानको साधु) दरओ-दरसे ही परिवजएचजे, अर्थात् ऐसी जगह साधु जानकर व्रतोंकी रक्षा और मोक्षकी प्राप्तिके निश्चयमें स्थित मुनि वेश्याके पाड़े (चकले)में भिक्षा आदिके लिए न जावे। ___'वियाणित्ता' पदसे यह सूचित किया है कि भलीभाँति जाने विना दोपका अच्छी तरह परित्याग नहीं हो सकता। 'एगंतमस्सिए' पदसे यह प्रगट किया है कि मुनिको सदा मोक्षप्राप्तिका लक्ष्य रखना चाहिये॥११॥ __ मार्गकी यलनाको विशेपरूपसे बताते हैं- 'साणं०' इत्यादि । જાણીને તેની રક્ષા અને મેક્ષની પ્રાપ્તિના નિશ્ચયમાં સ્થિત મુનિએ, વેશ્યાના મહોલ્લામાં ભિક્ષા આદિને માટે જવું નહિ.
वियाणित्ता शपथी गेम सूथित यु छ -सारी शले एया विना धोनी सारी पे परित्याग य श नथी. एगंतमस्सिए सण्यी सभ પ્રકટ કર્યું છે કે મુનિએ સદા મોક્ષપ્રાપ્તિનું લક્ષ્ય રાખવું જોઈએ. (૧૧)
माननीयतनान विशेष३पे ताछे. साणं. त्याल.