Book Title: Dashvaikalika Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अध्ययन ५ उ. १ गा. १५-गोचर्या कायचेप्टाप्रकारः 'भासमाणो' पदेनैकस्मिन् समये कार्यद्वयं सोपयोगं निप्पत्तुं न संभवतीति, 'इसंतो' इत्यनेन गाम्भीर्यम् , 'उच्चावचं' इत्यादिना प्रतिवन्धराहित्यं समतासाहित्यं च घोतितम् ॥१४॥ मूलम्-आलोअं थिग्गलं दारं, संधि दगभवणाणि य ।
चरंतो न विणिज्झाए, संकहाणं विवजए ॥१५॥ छाया-आलोकं थिग्गलं द्वारं, सन्धि दकभवनानि च ।
. चरन् न विनिर्ध्यायेत्, शङ्कास्थानं विवर्जयेत् ॥१५॥ सान्वयार्थ:-चरंतो भिक्षाके लिए घूमता हुआ साधु आलोयं जाली-झरोखेकी तरफ थिग्गलं ईट आदिसे भरे हुए भीतके छिद्रकी तरफदारं दरवाजेकी तरफ संधि-भीतकी सांधकी तरफ अथवा चोरोंद्वारा किये हुए भीतके छेदकी तरफ य-तथा दगभवणाणि-पलेण्डा आदिकी तरफ न विणिज्झाए-टक-टकी लगाकर नहीं देखे, (क्योंकि ये सब) संकटाणं शङ्काके स्थान हैं, (इसलिए इन्हें) विवज्जए विशेपरूपसे त्यागे। भावार्थ ऐसे स्थानोंको देखनेसे गृहस्थको साधुके प्रति चोर लम्पट आदिका सन्देह उत्पन्न हो जाता है, तथा एपणाकी यथोचित शुद्धि भी नहीं होती ॥१५॥
टीका-'आलोअं०' इत्यादि । चरन-भिक्षितुं गच्छन् मुनिः आलोकंवातायनजालिकाप्रभृति, थिग्गलं-देशीयभापया प्रसिद्ध भित्यामिष्टकादिरचितम् ,
भासमाणो' पदसे यह प्रगट किया है कि एक ही साथ दो कार्य उपयोगपूर्वक नहीं हो सकते । 'हसंतो' पदसे गंभीरता द्योतित की है. और उच्चावयं०' इत्यादि पदसे प्रतिबंध (नेसराय)-रहितता और समतासे सहितता प्रगट की है ॥१४॥
'आलोयं०' इत्यादि । भिक्षा लेने के निमित्त गमन करता हुआ मुनि झरोखा, जाली, भीत, दरवाजा, सेंध (चोरों द्वारा दीवार में किया માસના શબ્દથી એમ પ્રકટ કર્યું છે કે એકીસાથે બે કાર્યો ઉપગપૂર્વક 25 Asti नथी. इसंतो शपथी गंभीरता ५४८ ४१ छ भने उच्चावयं Vत्याह શબ્દોથી પ્રતિબંધ (નેસરાય) રહિતતા અને સમતાથી સહિતતા પ્રકટ ४२॥ छे. (१४)
आलोयं त्याहि. मिक्षाने भाट गमन ४२तेमुनि ३३, नी, नीत, દરવાજો, રે પાડેલું બાંકું (ખાતરીયાથી પડેલું બાંકેરૂ) અને ઉદકભવન અર્થાત