Book Title: Dashvaikalika Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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श्रीकालिन अप्कापादियतनामाट-'न गरेत्र' इत्यादि ! मूलम्-न घरेज चासे वासंते, मिहियाए पडतिए ।
महावाए व वायते, तिरिच्छसंपाइमेसु वा ॥८॥ छाया-न घरेद् वर्षे धर्पति, मिहिकार्या पतनस्याम् ।
महाबाते या चाति, विर्यसंपातेषु वा ||८|| अफाय आदिकी यतना कहते है- . सान्वयाथें:-चासे वासंतेर्या वरसते हुए मिहियाए पडतिए-धूअर-कुहरा गिरते हुए व-तथा महायाए वायंते महावायु-ऑपी के चलते हुए वा-भार तिरिच्छसंपाइमेसु-तीड-पतंगादिकोंके उडते हुए (साधु) न चरेजगोचरान जावे ||८॥
टीका-व वर्पतिवृष्टी सत्याम् , मिहिकायां-धूमिकायां पतन्या सत्या महाबाते प्रचण्डपवने वातिवहति सति, तिर्यसम्पातेपु-तिय पतनशाल शलभादिपु सत्सु न चरेत् । 'वासे वासंते' इत्यनेन शीकरपातसमयेऽपि गमन निषेधः तस्यापि दृष्टावन्तर्भावात् अपकायविराधनासाधनत्वाच ॥८॥ उक्ताप्रथममहायतविराधनाऽधुना चतुर्थमहाव्रतविराधनाया इतरमहाव्रतविराधना अपकायादिकी यतना कहते हैं-'न चरेज वासे० ' इत्यादि ।
जय वर्षा बरस रही हो, कुहरा (धूअर) पड़ रहा हो, आधा : रही हो, टिड्डी आदि उड़ रहे हों, तय साधु गमन न करे। 'वास वास इस पदसे यह भी ग्रहण कर लेना चाहिए कि जब फुहारे पड़ रह । तय भी गमन न करे, क्योंकि वह भी वर्षाहीमें अन्तर्गत है और उस समय जानेसे अपकायकी विराधना होती है ॥८॥ प्रथम महाव्रतकी विराधना घतानेके बाद अब अन्यमहाव्रतोंकी विराधन
सायाहिनी यतना छ-न चरेज्ज वासे. त्याहि. न्यारे व વરસી રહ્યો હોય, ધુમસ (ઝાકળો પડી રહ્યો હોય આંધી ચાલી રહી હોય, ટી रहा अाय, त्यारे साधु गमन न ४२. वासे वासंते थे शपथी मम पछु । કરી લેવું જોઈએ કે જ્યારે વરસાદની ફરફર પડી રહી હોય ત્યારે પણ તે ન કરે, કારણ કે તે પણ વરસાદમાં જ આવી જાય છે, અને તે સમયે જ अ५४ायनी विराधना थाय छे. (८)
પ્રથમ મહાવ્રતની વિરાધના બતાવ્યા પછી હવે બીજા મઠ ને ૧ વિરાધના
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અને તે સમયે જવાથી