Book Title: Dashvaikalika Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अध्ययनः ४ सू..१० (४)-मैयुनविरमणव्रतम्
२५३ - धर्ममुपायतश्चाऽप्रमत्तत्वातीयकराणां-धर्मार्जनोपदेशाचे न स्तेयप्रसङ्गः, अत एवाऽल्प-बहु-स्थूलाऽणुग्रहणं सूत्रे, कृतमितिः॥ १०-11:(३) ..iran'.
मैथुनविरमणमन्तरेण ह्यहिंसादिमहावताना संरक्षणं न भवितुं शक्नौति, यतो मैथुनपरायणः पाणी त्रस-स्थावर-जीवान् हिनस्ति, मिथ्या वदति, अदत्तं चाऽऽदत्तेऽतस्तेषां निरपायपरिपालनाय. मैथुनविरमण-नामधेय चतुर्थे महाव्रतमाह'अहावरे चउत्थे' इत्यादि-1, .. -- - -- -- जिससे कर्म, यंध जाते हैं। रहा, धर्मोपार्जन, सो तीर्थकर, भगवानने धर्मोपार्जन करनेका आदेश तथा उपदेश दिया है इसलिए अदत्तादानका प्रसँग नहीं आता। .... सूत्रमें अल्प, यह, स्थूल, और अणु, इन शब्दोंका ग्रहण भी इसी आशयसे किया गया है, अत एव कोंके बन्धन तथा समिति-गुप्ति द्वारा.धर्मोपार्जनमें अदतादान, नहीं लगता है:॥१०॥ (३) ...मैथुनविरमणके विना अहिंसा आदि. महाव्रतोंकी रक्षा नहीं हो सकती, क्योंकि मैथुन सेवन करनेवाला उस स्थावर जीवोंकी हिंसा करता है, असत्ययोलता है, और अदत्तको आदान करता है । अत एव 'अहिंसादि महाव्रतोंका निरतिचार पालन करनेके लिए मैथुन-विरमण नामक चतुर्थ महाव्रतका प्रतिपादन किया जाता है- अंहावरे चउत्थे' इत्यादि । ....: + riy rit . ... rint ... . ધર્મોપંત, તે તીર્થંકર ભગવાને ધર્મોપાર્જ કરવાનો આદેશ 'તથા ઉપદેશ આપે छ. तथा तभी तहाननी प्रसंगमावत'नेया.in v.. सूत्रमा प, गहु, स्था, अन मी, महार्नु पर्थ में भाशयथार"श्वीमा "मायुमभाना मन तयाँ साभात शिश
पाना भी महत्तहान दाग नथी (3) (१०) * * મૈથુનવિરમણ વિના અહિંસા આદિ મહાવતેની રક્ષા થઈ શકતી નથી, કારણ કે-મૈથુન સેવન કરવાવાળ, ત્રસસ્થાવર જીવેની હિંસા કરે છે, અસત્ય બેલે છે. અને અદત્તનું આદાન કરે છે. તેથી કરીને અહિંસાદિમહાવ્રતનું નિરતિચાર पारन वान भाटे.. मेथुनविरभर नामर्नु याथु मानतर्नु.. प्रतिपादन ४२१ाभा-सावे-अहावरे चउत्थे. त्या Liii .. . is...