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[५० की, तथा गुजरात देशमें अणहिलपुरपाटणमे शिथिलाचारी चैत्यवा. सियाने संयमधर्मको दबा दियाथा, उसको श्रीजिनेश्वरसूरिजी महा. राजने वहां जाकर फिरसे प्रकट किया और श्रीनवांगीवृत्ति कारक खरतरगच्छनायक श्रीअभयदेवसूरिजी महाराजने श्रीस्थंभनपार्श्वना. थजीकी प्राचीनप्रतिमाको फिरसे प्रकटकी.तैसेही-कल्प,स्थानांग,द. शाश्रुतस्कंध,आचारांगादिआगमोंमेकहेहुए श्रीमहावीरस्वामीकेच्यवनादि छ कल्याणकोको मेवाडदेशमें चितोडनगरमै शिथिलाचारी, लिंगधारी, चैत्यवासियोंने दबा दियेथे,उन्होंकोही श्रीजिनवल्लभसू. रिजी महाराजने वहां जाकर फिरसे प्रकट किये है. सो शास्त्रविरुद्ध नवीन नहीं,किंतु आगमोक्त प्राचीनही है जिसकाभी भावार्थ समझे. बिनाही नवीन प्रकट करनेका कहतेहैं, सो भी अज्ञानताजनक प्रत्यक्ष ही मिथ्या भाषणरूप यह बावीशवीभी बडी भूलकी है।
२३- जैसे-अभी वर्तमानिक गच्छौके पक्षपाती लोग अहमदाबाद वगैरह शहरों में अपने गच्छके उपाश्रय वा धर्मशाला वगैरह मकान खालीपडेहोवें, तोभी अन्यगच्छवाले शुद्धसंयमीमुनियोको उस मका. नमें ठहरने नहीं देते,और यति लोगभी अपने गच्छके आश्रित भगवा. नके मंदिर में अन्य गच्छकेयतिको स्नात्र महोत्सवादि पूजापढाने नहीं देते.जिसपरभी अन्यगच्छवाला कोई यति अपनेगच्छ के आश्रित मंदिरमें स्नात्रमहोत्सवादि पूजापढानेको आवे, तो वो लोग मरणे मारणे शिरफोडनेको तैयार होतेथे,और कहतेथे,कि ऐसा कभी पहिले हुआ नहीं और अभी होने देंगेभी नहीं.'यहबात गच्छोंके विरोधभावसे मा. रवाड,गुजरात वगैरहदेशोंमें पहिले प्रसिद्धहीथी और कोई शहरों में अबीभी देखने में आतीहै। इसी तरह सेही पहिले चैत्यवासी लोगभी आपसके द्वेषसे या लोभदशाले अपने गच्छके आश्रित मंदिर में अ. न्यगच्छवालेको स्नात्रपूजा महोत्सव,प्रतिष्ठादि कार्य नहीं करनेदेतेथे. उस अवसरमें श्री जिनवल्लभसूरिजी महाराजभी गुजरातदेशसे वि. हार करके मेवाडदेशमें विशेषलाभ जानकर जिनाज्ञाविरुद्ध शिथि लाचारी चैत्यवासियोंका अविधिमार्गका निषेध करतेहुए; जिनामा नुसार विधिमार्गका उपदेशद्वारा स्थापन करतेहुए, भव्यजीवोंके उ. पकारकेलिये चितोडनगरमें पधारे.तब वहांवाले चैत्यवासियोंने औ. र उन्होंके पक्षपातिभक्तलोगोंने अपनीभूल प्रकटहोनेके भय से महारा. जको शहरमें ठहरनेकेलिये कोईभीजगह नहीं दिया और द्वषबुद्धिसे चामुंडिका देवीके मंदिरमें ठहरनेका बतलाया, तब महाराज तो दे
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