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[ ४१५ ] वालोंको अनेक उपद्रव दिखाने और आप दोनं मासों को लिखके उसी मुजब बर्ताव करते भी, उसीको गिनती में न लेते हुये प्रत्यक्ष माया वृत्तिसे दूषण रहित बनना सो सब बाल जोवोंको कदाग्रह में फंसाकर उत्सूत्र भाषणसे संसार परिभ्रमणका हेतु है सो तो निष्पक्षपाती तत्वज पुरुष स्वयं विचार लेवेंगे ;
और मास रद्धि होनेसे माम तिथि नियत सब नैमित्तिक कृत्योंको दूसरे मासमें करनेका सातवें महाशयजी ठहराते हैं से भी अज्ञताका सचक है क्योंकि वर्तमान में मास वृद्धि होनेसे मास तिथि नियत कृत्य, आगे पीछे दोनों मासमें करनेमें आते हैं याने कृष्ण पक्षके तिथि नियत कृत्य प्रथम मासके प्रथम कृष्ण पक्षमें करने में आते हैं और शुक्ल पक्षके तिथि नियत कृत्य दूसरे मासके दूसरे शुक्ल पक्षके करने में आते हैं :
मित्रवत् न्यायसे अर्थात्-एक नगरमें सज्जनादि गुनगुत व्यवहारिया रहता था उसीने अपने भोजनकी तैयारी करी उसी समय उसीके मित्रका आगमन हुआ तब दूसरा भोजन बनाने का अवसर न होनेसे अपने भोजनमें से आधा मित्रको दिया और आधा आपने ग्रहण किया,उसी दृष्टान्तके न्यायसे एक नगर रूपी संवत्सर उसीमें सज्जनादि गुनयुक्त व्यवहारियावत् मास उसीके भोजन रूपी नैमित्तिक कृत्य और अधिक मास रूपी मित्रका आगमन होनेसे आधे आधे मैमित्तिक कार्य बांट लिये समजो जैसे दो कार्तिक होवेंगे तब श्रीसंभवनाथस्वामीके केवल ज्ञान कल्याणकके श्रीपद्मप्रभुजीके जन्मकल्याणकके तथा दीक्षाकल्याणकके, श्रीने
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