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[ ४३१ । और जैनपत्रका अधिपति आठवा महाशय श्रावकनाम धारक भगुभाई फतेचन्दने सेम्बर मासकी २२वीं तारीख सन् १९०९ दूसरे श्रावण बदी १३, परन्तु हिन्दी भाद्रपद कृष्ण १३ वीर मंवत् २४३५ के जैनपत्रका २३ वा अङ्ककी आदिमेंही 'पर्युषणा विषे विचार' नामसे जो लेख प्रगट करा है सो तो सातवें महाशयजीके पर्युषणा विचारके लेखको ही गुजराती भाषामें लिखकी प्रगट किया है इमलिये जैनपत्रवालेके लेखकी तो सातवें महाशयजीके लेखकी तरह कपर मुजबही समीक्षा समझ लेना और जैनपत्रवाला संप संप पुकारता है परन्तु एकएकको निन्दा करके कुसंपकी एद्धि करता है तथा गच्छके पक्षपातसे सत्य बातोंका निषेध करके अपना मिथ्यापक्षको स्थापन करने के लिये उत्सूत्रभाषणोंसे दुर्गतिका रस्ता लेता है और अज्ञानी जीवोंकोभी वहांही पहुंचानेके लिये उत्सूत्र भाषणोंका संग्रह जैनपत्रमें प्रगट करता है और कान्फरन्स सुकृत भण्डारादिसे शासनोन्नतिके कायों में विघ्नकारक गच्छोंके खण्डनमण्डनका झगड़ा एकवार नहीं किन्तु अनेकवार जैनपत्रमें उठाया है क्योंकि देखो पर्युषणा सम्बन्धी भी प्रथमही छठे महाशयजीकी मिथ्या कल्पनाकर उत्सूत्र भाषणका लेखको जैनपत्रमें प्रगट करके झगड़ेकी नीव रोपन करी तथा सातवें महाशयजीके भी उत्सूत्र भाषणोंके संग्रहवाला लेखका भाषान्तर प्रगट करके उत्सूत्रभाषणोंके भयङ्कर विपाक लेने के लिये दुर्गतिका रस्ता लिया और फिर भी छठे महाशयजी की तरफके श्रीखरतरगच्छ वालों की निन्दावाले तथा कोर्ट कचेरी में झगड़ा लड़ाके दीर्घकाल पर्यन्त कुसंपकी वृद्धि करनेवाले दो
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