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[ ४३८ ] कल्पमम्बन्धीबातलिखके बालजीवोंको भ्रममैगेरें और अधिक मासकी गिनती निषेध दिखा कर अपनो विद्धत्ताकी चातुराई विवेकी तत्वज्ञ पुरुषों के आगे हास्थ की हेतु रूप प्रगट करी है क्योंकि निशीथचूर्णिमें ही खास अधिक मारूको गिनती प्रमाण करीहै और अज्ञात तथा ज्ञात पर्युषणा सम्ब न्धी विस्तारसे व्याख्या को है सो पाठ भावार्थ महित तीनों महाशयों के लेखा की समीक्षामें इसही ग्रन्थके पष्ट ९५ से १०४ तक छपगयाहै इसीलिये आगे पीछेके प्ररूंग व ले सब पाठको छोड़कर विना सम्बन्धके अधरे पाठसे बाल जीवोंको भ्रम में गेरने सोमी उत्सत्र भाषण है।
और आगे फिर भी अधिक मासमें क्या क्ष धा नहीं लगती है तथा कार्योदय नही होताहै और देवमिक पाक्षिक प्रतिकमण, देवपूजा मुनिदानादि क्रिया शुद्ध नहीं होती है सो गिनती में नहीं लेतेहो इस तरह का पूर्व पक्ष उठोकर उसीका उत्तर में पांचमासके चौमासेमें तुमभी चारसास कहतेहो इत्यादि अज्ञानतासै प्रत्यक्ष मिथ्या और उटपटांग लिखा है सोते. वृथाही हास्य का हेतु कियाहै । और श्री उत्तराध्ययनजीके २६ अध्ययनका पौरूष्याधिकारे मामहद्धिके अभाव सम्बन्धी सविस्तर पाठको छोड़कर “असाढमासे दुप्यया सिर्फ इतमाही अधूरा पाठ लिखके उत्सत्र भाषण से भोले जीवोंको भ्रमानेका कारण कियाहै इसका निर्णयतो तीनों महाशयों के लेखको समीक्षामें इसही ग्रन्थ के पृष्ठ १३६ । १३७ में छप. गयाहै ।
और श्रीआवश्यक निर्यक्तिकी गाथाका तात्पर्यार्थको समझे बिना तथा प्रसंगकी बातको छोड़कर 'जइ फन्ला'
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