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बातको इस ग्रन्थके पढनेवाले सज्जन स्वयं विचार लेवेंगे । और अधिक मासको कालचूला कहते हुए भी नपुंसक लिखते हैं सभी श्री अनन्ततीर्थंकर गणधरादि महाराजों की आशातना करने के बरोबर है तथा विवाहादि मुहूर्तनैमित्तिक संसारिककार्योंके लियेभी उपर में ही हर्ष भूषणजी के लेखसूचना करने में आगई हैं ।
और वो दिनको ज्ञात पर्युषणाके सिवाय और कार्यों में अधिकमासको प्रमाण करनेका नहीं दिखता है यह लिखना भी श्रीकुलमंडनसूरिजी का प्रत्यक्षमिथ्या है क्योंकि दिनों की पक्षोंकी मासों की गिनतीका कार्य में, चौमासेके वर्षक युग के प्रमाणकी गिनतीका कार्यमें, क्षामण के कार्य में, सामायिक प्रतिक्रमण पौषध देवपूजा उपवास शीलव्रतादि नियमेांका प्रत्याख्यानोंके गिनतीका कार्यों में चौमासी छमासी वर्षो तथा वीसस्थानकजीके और पर्युषणादि तप केदिनों की गिनती के कार्यों में और आगनेोके योग वहनादि कार्यों में, अधिक मासके दिनों की गिनती को प्रमाण गिननेमें आती है सो तो प्रत्यक्ष अनुभव की प्रसिद्ध बात है । और एकजगह अधिकमासको कालचूला लिखते हैं दूसरी जगह नपुंसक लिखते हैं तथा एकजगह श्रीवृहत्कल्पचणि श्रीनिशीथच जिंकेपाठोंसे 'चेव' निश्चय अधिकमासको गिनती करने का लिखते हैं दूसरी जगह नही गिनने का लिखते हैं इसतरहसे बालजीवों को भ्रम में गेरनेवाले पूर्वापरविरोधि (विसंवादी) लेखलिखते कुछ भी विचार न किया सोभी कलयुगी विद्वत्ताका नमूना हैं ।
और आगे फिरभी जो जैन पंचाङ्गानुसार प्राचीन कालमें अभिवर्द्धितसम्बत्सर में वीरादिने अर्थात् श्रावणशुदी
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