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[ ४४३ ]
संबंधी श्रीकुल मंडन सूरिजी का लिखना प्रत्यक्ष मिथ्या है।
और जैन पंचांगानुसार पौष तथा आषाढ की वृद्धि होती थी तब भी उसी के दिनोंको पर्युषणादि सब धर्म कार्यों में गिनती करतेथे सातो उपरमेंही श्रीवृहत्कलन चूर्णि श्रीनि शीवचूर्णिके पाठसे प्रत्यक्ष दिखता है परन्तु वर्तमानकाले जैन पंचांग के अभाव से लौकिक पंचांगानुसार वर्ताव करने में आता है उसीमें चैत्रादि मासोंकी वृद्धि होती है उसी के ३० दिनोंमें दुनियांका सब व्यवहार तथा धर्म व्यवहार प्रत्यक्ष पहाता है इसलिये उसीके दिनांकी गिनती निषेध नहीं होसकती है तथापि जो संक्रांति रहित मलमास केभरोसे अधिक मासके दिनोंकी गिनती निषेध करते है से अपनी पूर्ण अज्ञानतासे भोले जीवोंको गल्छकदा ग्रह में गेरनेका कार्य करते हैं क्योंकि संक्रांति रहित अधिक मास को मलमास कहा है तैसेही दो संक्रांति वाले क्षय मासको भी मलमास कहा है परन्तु अधिक मासके तथा क्षय मास के दिनोंकी गिनती बरोबर करते हैं । तथाहि कमलाकर भट विरचित ( लौकिक धर्मशास्त्र) निर्णय सिंधौनामा ग्रंथे ।
तत्र संक्ष ेपतः कालः षोढा - अब्दोयनमृतुमीसः पक्षदि - बस इति ॥ पुनस्तत्र वक्षमाणः श्रावणादि द्वादश मासे स्तब्ई | मलमासेतु सति षष्ठिदिनात्मकः एको मासो द्वादश मासत्वमविरुद्धमिति ॥ तथाच व्यासः षष्ट्यातु दिवसेमांसः कथितो बादेरायणैः - इति ॥ अथ मलमास क्षयमास निर्णय । अथ मल मासः तत्रैकमात्र संक्रांति रहितः सितादिवांदा मासा मठ मासः एकमात्र संक्रांति राहित्यमसंक्रातित्वेन संक्रांति द्वयत्वेनच भवतिइति । मल मासो द्वेषा
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