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[ ४४२ ] कका प्रमाणश्रीअनन्त तीर्थंकर गणधरादि महाराजोंने कहाहै तथा श्रीवृहत्कल्पचर्णि श्रीनिशीथचर्णिमें निश्चय अधिक मासको गिन करके वीशदिने ज्ञात पर्युषणा कहीहै तथापि श्रीकुलमडनसूरिजीने पर्युषणाधिकारे कालचलाके बहाने अधिक मासको गिनतीमें निषेध किया सो श्रीअनन्त तीर्थकर गणधरादि महाराजों की आजा उत्थापन रूप उत्सूत्र भाषण है।
और 'आसाढमासे दुप्पया,संबंधी तो उपरमेंही हर्षभू. षणजीके लेखका उत्तर में सूचना करने में आगईहै । और स्थिवीर कल्पियोंके अधिकमासहोतेझी नवविभागक्षेत्र याने मवकल्पि विहारकालिखासोभी प्रत्यक्षमिय्या है क्योंकि १० कल्पिविहारप्रत्यक्षपने होताहै इसकानिर्णय तथा दीवाली अक्षय तृतीयादि लौकिक संबंधी लिखाहै जिसका निर्णय और श्रीजिनेश्वर भगवान्के कल्याणक संबंधी लिखा है जिसका भी निर्णय तो सातवें महाशयजीके लेखकी समीक्षा, होगया है।
और एक युगके दोनों अधिक मासांके दिनोंकी गिनती पूर्वक १८३० दिनों में सूर्यचारके दश [१०] अयण श्रीतीर्थकरगणधरादि महाराजांने कहेहैं सो श्रीचंद्र पनति श्रीसूर्यपन्नति श्रीजंबूद्वीपपन्नति श्रीज्योतिषकरंडपयन्न तथा इनही शास्त्रोको व्याख्यओं में और श्रीवहत्कल्पवृत्ति, मंडल प्रकरणादि अनेकशास्त्र में प्रगटपाठहै और लौकिकर्मभी अधिकमासहोनेसे उसीकेदिनांकी गिनतीपूर्वक १८३ दिने दक्षिणायणसे उत्तरायणमें सर्यमंडलहोनेका प्रत्यक्षदेखने में आता है इसलिये ६ मासके अयणकाप्रमाणमें अधिकमास नही गिनने
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