Book Title: Bruhat Paryushananirnay
Author(s): Manisagar Maharaj
Publisher: Jain Sangh

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Page 561
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ४२ ] पदमें खास आप पर्युषणा करते हैं और ८।१०।१५ २०१६३०२४०१४५ दिनके उपवासोंकी तपस्याकी गिनती में अधिक मासके ३० दिनको बराबर गिनते हैं । तो अब पाठकवर्गको विचार करना चाहिये कि खास आप अधिक मासके दिनोंको तपश्चर्याकी गिनती में लेते हैं तथा अधिक मासमें ही पर्युषणा करते हैं तथापि उसीको नपुंसक निःसत्व ठहराकर दृष्टिरागी भोले भाले जीवोंको श्रीजिनाज्ञासे भ्रष्ट करते हैं सो अभिनिवेशिक मिथ्यात्व से कितने संसार वृद्धिका हेतु है सो तत्वज्ञ स्वयं विचार लेवेंगे, - www और पर्युषणा विचारका छपाई खर्चा और टपाल खर्चा श्रीयशोविजयजीकी पाठशाला के सम्बन्धसे लगा है सो तो यहां दलीपसिंह जी जौहरीके पास काशी की पाठशालालासे उदयराज कोचरका पोष्टकार्ड आया है उसी से तथा और भी कितनेही कारणोंसे सिद्ध होता है उसका विशेष विस्तार अवसर होनेसे पुनरावृत्ति में लिखने में आवेगा और पर्युषणा बिचारका लेख काशी में उसी पाठशालेसे प्रगट भी हुवा है तथापि सातवें महाशयजी अपनी निन्दा के भय से श्री यशोविजयजी की पाठशाला के नामसे पर्युषणा विचारके लेखको प्रगट न कराते उदयराज कोचर के नामसे प्रगट कराया और श्रीकाशी (वाणारसी ) का नाम भी न लिखाते प्रत्यक्ष मिथ्या फलोधीका नाम लिखा के मायाबृत्ति से फलोधी के नामसे प्रगट कराया तो फिर अनुमान ६० जगह सत्सूत्र भाषणोंवाला तथा १० जगह प्रत्यक्ष मिथ्यालेखवाला और सत्य बात का निषेध करके अपनी कल्पनाकी मिथ्या बातको स्थापने For Private And Personal

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